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________________ [२२१ . बड़ा पाप माना गया है । 'संघे शक्तिः कलौ युगे' यह उक्ति प्रसिद्ध है जिसका अाशय यह है कि विशेषतः कलियुग में संघ में ही शक्ति-निहित होती है। भद्रवाहु स्वामी संघ की महिमा से सुपरिचित थे। अतएव उन्होंने संघ को उचित आदर प्रदान किया। 'मुनि युगल ने लौट कर संघ को भद्रवाहु का संदेश सुनाया। श्रुतसभा उपस्थित थी। अमरदीप को प्रज्वलित करने और प्रज्वलित रखने के लिए सन्त जन उद्यत थे। अमरदीप हमारे हृदय में विद्यमान है। उसकी ज्योति को बढ़ाने की आवश्यकता है। वह अमरदीप श्रु तज्ञान का प्रदीप है जो केवल ज्ञान के भास्कर को उदित कर सकता है। यदि श्र तज्ञान का दीपक न हो तो केवल ज्ञान का भास्कर किस प्रकार उदित हो सकता है ? . . ... भद्रबाहु स्वामी के उत्तर को सुनकर संघ ने जो निर्णय किया, उसका दिग्दर्शन आगे कराया जाएगा। जो श्रु तज्ञान के भाव-दीपक को अपने अन्तर में प्रज्वलित करेंगे, उन्हीं का दीपमालिका पर्व मनाना सार्थक होगा और उन्हीं का शाश्वत कल्याण होगा। इस विराट और विशाल सृष्टि में अनन्त-अनन्त पदार्थ विद्यमान हैं। अगर उनकी गणना का उपक्रम किया जाय तो अनन्त जन्म में भी गणना नहीं हो सकती। उन सबको जान लेना भी छद्मस्थ के सामर्थ्य से बाहर है। ऐसी स्थिति में वर्गीकरण की पद्धति को अपनाना ही आवश्यक है। प्रतिपादक अपनी विरक्षा के अनुसार विश्व के समस्त पदार्थों को कतिपय राशियों में विभक्त कर लेता है और फिर उन पर प्रकाश डालता है। उदाहरणार्थ-जैन परम्परा में दार्शनिक दृष्टि से संसार के समस्त पदार्थों को षट् विभागों में विभवत किया गया है जिन्हें षट् द्रव्य की संज्ञा दी गई है। इस विभाजन से
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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