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________________ ૨૬ ] की तुलना में पर वस्तुओं से प्राप्त होने वाला सुख नीरस और तुच्छ प्रतीत होने लगता है । श्रावक ग्रानन्द को भगवान् महावीर के समागम से आत्मा की अनुभूति उत्पन्न हुई । उसने श्रावक के व्रतों को अंगीकार किया बाह्य वस्तुओं की मर्यादा की । वह अन्तर्मुख होने लगा । भगवान् ने उसे भोगोपभोग की विधि समझाते हुए कर्मादान की हेयता का उपदेश दिया । गृहस्य का धनोपार्जन के बिना काम नहीं चलता, तथापि यह तो हो ही सकता है कि किन उपायों से वह धनोपार्जन करे और किन उपायों से धनोपार्जन न करे, इस बात का विवेक रखकर श्रावको - चित उपायों का अवलम्बन करे और जो उपाय अनैतिक हैं, जो महारंभ रूप हैं, जिनमें महान् हिंसा होती है और जो लोकनिन्दित हैं, ऐसे उपायों से धनोपार्जन न करे । भगवान् महावीर ने ग्रानन्द को बतलाया कि जिन उपायों से विशेष कर्म बन्ध और हिंसा हो वे त्याज्य हैं। साथ ही वे पदार्थ भी हेय हैं जो कर्म बन्ध और हिंसा के हेतु हैं । सोमिल, संखिया, तमाखू आदि पदार्थ त्याज्य पदार्थों में सर्व प्रथम गणना करने योग्य हैं ! पेट्रोल और मिट्टी का तेल भी विष तुल्य ही है । ऐसे घातक पदार्थों का व्यापार करना निषिद्ध है । अभी कुछ दिन पूर्व समाचार मिला था कि किसी जगह जमीन में पेट्रोल गिर गया । उस पर वीड़ी का जलता हुआा टुकड़ा पड़ जाने से कईयों को हानि पहुंची ! पेट्रोल या मिट्टी का तेल छिड़क कर आत्म हत्या करने के समाचार तो अखबारों में छपते ही रहते हैं । इस प्रकार ग्राज संखिया और और सोमिल के कई भाई-बन्धु पैदा हो गये हैं । जिसने अपनी अभिलाषा को सीमित कर लिया है जो संयम पूर्वक जीवन निभाना चाहता है, अल्प पाप से कुटुम्ब का पालन-पोषण करना चाहता है, वह ऐसे निषिद्ध कर्मों और पदार्थों को नहीं अपनाएगा । वह तो धर्म और नीति के साथ ही अपनी जीविका उपार्जन कर लेगा । किन्तु जिस की इच्छाएं सीमित नहीं है, स्वच्छन्द और निरंकुश हैं, जो नयी-नयी कोठियाँ और बंगले बनवाने के स्वप्न देखता रहता है, उसका निषिद्ध कर्मों से बचना कठिन है ।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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