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________________ प्राचार्यों ने भी गुणों के दो विभाग किए हैं(१) देवी सम्पत्ति-अहिंसा, अभय, संशुद्धि, सत्य आदि श्रेष्ठ गुण इस कोटि में आते हैं। (२) आसुरी सम्पत्ति-हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य, ममत्वमूर्छा आदि दुगुण, जो आत्मा को अधःपतन की ओर आकर्षित करते हैं, इस कोटि में गिने जाते हैं। मुनिराज ने रूपकोशा को आसुरी सम्पत्ति के बदले दैवी सम्पत्ति की स्वामिनी बनाया और श्रावकधर्म की दीक्षा दे दी । उसके हृदय की आकुलता, वासना, अशान्ति और सन्तप्तता दूर हो गई। त्याग में जो अद्भुत अानन्द और तृप्ति है, जिसे त्यागी ही अनुभव कर सकता है,उसे प्राप्त होगई । उसका जीवन साधना के पथ पर अग्रसर हुआ। रूपकोशा की तरह जो अपने जीवन को शान्तिमय बनाना चाहते हैं, . वासना के पंकिल पथ का परित्याग करके साधना के राजमार्ग की ओर मुड़ना चाहिए और उसी पर अग्रसर होना चाहिए । दुल मनोवृत्ति को त्याग कर सबल और शुभ मनोवृत्ति को जगाना चाहिए। ऐसा करने से ही परम मंगल ___ का द्वार खुलता है और इहलोक तथा परलोक आनन्दमय बनता है।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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