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________________ धर्म और कानून का राज्य 'सव्व जगजीवरक्खणदयट्ठयाए पावयरणं भगवया सुकहिअं।' ' --प्रश्न व्याकररंग सूत्र भगवान् महावीर ने उस समय धर्मदेशना प्रारम्भ की जब वे चार धनघातिया कर्मों का क्षय करके सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, वीतराग और कृतकृत्य हो चुके थे। अतएव सहज ही . यह प्रश्न उपस्थित हो सकता है कि उनके लिये धर्मदेशना देने का प्रयोजन क्या था ? जब वे पूर्ण वीतराग थे, जो कुछ प्राप्त करना था उसे प्राप्त कर चुके थे, तब देशना देने में उनकी प्रवृत्ति क्यों हुई ? ___ कर्म शास्त्र की दृष्टि से तो कहा जा सकता है कि भगवान् कृतार्थ होने पर भी तीर्थकर नामकर्म के उदय को वेदन करने के लिए धर्मदेशना देते हैं। धर्मदेशना देने से ही तीर्थकर प्रकृति की निर्जरा होती है । यह धर्मदेशना का कारण है। किन्तु दूसरी दृष्टि से भगवान् की धर्मदेशना का लक्ष्य है जीव मात्र की रक्षा। सम्पूर्ण जगत् के जीवों का रक्षण ही तीर्थ कर के प्रवचन का परम लक्ष्य है। यहाँ जीवों में किसी भी प्रकार का भेद नहीं रक्खा गया है। भगवान् की देशना में किसी प्रकार का पक्षपात नहीं है, संकीर्णभाव नहीं है । ऐसा नहीं है कि वे मनुष्य जाति की रक्षा का उपदेश दें और मनुष्येतर प्राणियों की उपेक्षा करें । शास्त्र में रक्षण और दया इन दो शब्दों का प्रयोग किया गया है। वास्तव में रक्षा . या दया की भावना समग्रता को लेकर ही चल सकती है । लंगड़ी दया सच्ची दया नहीं कहला सकती। किसी मनुष्य के चार लड़के हैं। यदि वह सन्ततिप्रमी है तो चारों. पर उसका समान स्नेह होता है । जो पिता पक्षपात से काम लेता है, किसी सन्तान पर स्नेह रखता है और किसी पर नहीं, उसे आदर्श पिता नहीं कहा जा
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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