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________________ कर्मादान वीतराग प्रभु ने संसार के जीवों को कल्याण का सर्वोत्तम मार्ग बतलाया है। वह मार्ग ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूप है। वस्तुस्वरूप को यथार्थ रूप में समझना, उस पर पूर्ण आस्था करना और फिर उसके अनुसार . अाचरण करना यही आत्म शुद्धि का सही मार्ग है । - कई लोग अकेले ज्ञान से ही निश्रयस् की प्राप्ति होने की कल्पना करते हैं । उनका कथन है कि तब के ज्ञान से मुक्ति प्राप्त हो जाती है, आचरण की कोई आवश्यकता नहीं । किन्तु यह मान्यता अत्यन्त भ्रमपूर्ण है । और हमारा । दैनिक अनुभव भी इसका विरोधी है । ज्ञान मात्र से किसी भी कार्य में चाहे वह लौकिक हो या लोकोत्तर सफलता प्राप्त होती नहीं देखी जाती । औषध के ज्ञान * मात्र से रोग का अन्त नहीं आता भोजन देख लेने से भूख नहीं मिटती और किसी यंत्र को बनाने के ज्ञान मात्र से यंत्र नहीं बन सकता। ऐसी स्थिति में यह - स्पष्ट है कि शुद्ध आत्म स्वरूप के ज्ञान मात्र से सिद्धि प्राप्त नहीं हो सकती। - हेय और उपादेय का ज्ञान आवश्यक है किन्तु उस ज्ञान को क्रियान्वित . करने की भी अनिवार्य आवश्यकता है । हेय जिसे समझा, उसका त्याग करना चाहिए और उपादेय का उपादान अर्थात् ग्रहण करना चाहीए । यही ज्ञान की सार्थकता है । जान लिया किन्तु तदनुसार पाचरण नहीं किया तो ज्ञान निरर्थक है। कहा भी है ज्ञानं भारः क्रियां बिना। - आचारविहीन ज्ञान भारभूत हैं । उससे कोई लाभ नहीं होता । सर्प को सामने आता जान कर भी जो उससे बचने का प्रयत्न नहीं करता है, उसका
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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