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________________ १५६ ] - सुदर्शना एक प्रमुख साध्वी थी। जब जमालि सिद्धान्त विरुद्ध प्ररूपणं और श्रद्धा के कारण भगवान् महावीर के साधुसंघ से पृथक होने लगे तो सुदर्शना ने भी जमालि का अनुसरण किया। उनका कथन यह था कि कोई भी कार्य जब तक किया जा रहा है तब तक उसे किया नहीं कहा जा सकता । जब कार्य किया जा चुके तभी उसे किया कहना चाहिए । 'क्रियमाण' को 'कृत, कहना मिथ्या है। .. भगवान् महावीर के मतानुसार क्रियमाण कार्य को भी कथंचित् कृत कहा जा सकता है । वात यह है कि हम स्थूल दृष्टि से जिसे. एक कार्य कहते हैं, वास्तव में वह अनेकानेक छोटे-छोटे कार्यों का समूह होता है । उदाहरणार्थ जुलाहा वस्त्र बनाता है तो.हम वस्त्र बनाने को एक कार्य समझते हैं, परन्तु वह एक ही कार्य नहीं है । ताना-बाना बनाना, फिर उसमें एक-एक तार (डोरा) डालते रहना आदि सब मिल कर अनेक क्रियाओं से एक कार्य की निष्पत्ति होती है । जुलाहे ने जव एक तार डाला तब वस्त्र को यदि नहीं बना कहा जाय तो दूसरा, तीसरा और चौथा तार डालने पर भी नहीं बना ही कहा जाएगा। इसी प्रकार अन्तिम तार डालने पर भी उसे बना हुआ नहीं कह सकते । जैसा पहला तार वैसा ही अन्तिम तार है । पहला तार एक होता है तो अन्तिम तार भी एक ही होता है । अगर एक तार से वस्त्र बना हुआ नहीं कहलाता तो अन्त में भी बना हुआ नहीं कहा जा सकेगा। अतएव यही मानना उचित है कि जब वस्त्र बन रहा है तो डाले हुए तारों की अपेक्षा उसे बना हुआ कहा जा सकता है। ___मगर जमालि की समझ में यह बात नहीं आई। सुदर्शना साध्वी भी उसके चक्कर में आ गई । सुदर्शना को साथिनी. अन्य कई साध्वियों ने भी उसका साथ दिया। देखा जाता है कि कभी-कभी बड़ी शक्तियां जिस कार्य में असफल सिद्ध हो जाती हैं छेटी शक्ति उसे सम्पन्न करने में सफल हो जाती है। ___ मध्यान्ह का समय था । कुंभकार ढंक घड़े पर थप्पियां लगा रहा था। कुछ दूरी पर बैठी साध्वियां स्वाध्याय कर रहीं थीं । ढंक को पता चल
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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