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________________ कर देता है उसके क्रोध का एक कारण कम हो जाता है। इस प्रकार जितना क्षेत्र बाह्य पापों का घटा उतना ही कषायों के विस्तार का क्षेत्र घटा। - जो शरीर के प्रति ममतावान् है उसे शरीर के प्रतिकूल आचरण करने पर रोष उत्पन्न होता है, किन्तु जिसने शरीर को पर-पदार्थ समझ लिया है. और जिसे उसके प्रति किंचित् भी ममता नहीं रह गई है, वह शरीर पर घोर ... से घोर आघात लगने पर भी रुष्ट नहीं होता। ऐसे अनेक महर्षियों की पुण्य गाथाएं हमारे शास्त्रों में विद्यमान हैं जिन्होंने भीषण शारीरिक आघातों के होने पर भी अखण्ड समभाव रक्खा और लेश मात्र भी रोष का उन्मेष नहीं होने दिया। गजसुकुमार के शरीर की वेदना क्या सामान्य थी? स्कंधक मुनि का स्मरण क्या हमारे रोंगटे नहीं खड़े कर देता ? मेतार्य मुनि को क्या कम श्राघात लगा था ? फिर भी ये प्रात्तःस्मरणीय मुनिराज क्षमा के प्रशान्त सागर में ही अवगाहन करते रहे। क्रोधःकी एक भी चिनगारी उनके हृदय में उत्पन्न .. नहीं हुई। इसका क्या कारण था ? यही कि वे अपने शरीर को भी अपना ___.नहीं मानते थे। वे समझ चुके थे कि इस नाशशील पौद्गलिक शरीर का मेरी अविनश्वर चिन्मय आत्मा के साथ कोई साम्य नहीं है। इसी कारण वे शारीरिक यातना के समय भी समभाव में विचरण करते रहे और अात्म कल्याण ... के भागी बने। ..... ............. .. साधारण संसारी प्राणी लोम का दास है। वह भूमि और धन आदि के संग्रह की वृद्धि के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहता है । उसने सभी द्वार खोल रक्खे हैं । व्यवसाय में मुनाफा होगा तो फूला नहीं समाएगा। नवीन मकान बनवाएगा तो पड़ौसी की दो चार अंगुल जमीन दबाना चाहेंगा। इस प्रकार जिन्होंने अंकुश नहीं लगाया है, वे बाहय वस्तुओं का विस्तार करेंगे और उसी में आनन्द मानेंगे। उनके प्रत्येक व्यवहार, वचन और विचार से लोभ का निर्भर ही प्रवाहित होगा!....... ..... .. जो व्यापारी या दुकानदार हैं, उसे खेत या जमीन का लालच नहीं होगा, क्योंकि उस और उसका आकर्षण नहीं है। अगर कोई गृहस्थ व्यापार
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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