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________________ कर्मदान [४] संसार में अनन्तानन्त जीव हैं और उन सब को पृथक्-पृथक् सत्ता है। सभी संसारी जीव कर्मोदय के अनुसार शरीर धारण करते हैं, जीवन व्यतीत __ करते हैं और अन्त में मरण के शरण हो जाते हैं। इन अनन्तानन्त प्राणियों में से बहुत कम को विवेक शक्ति प्राप्त होती है, थोड़े से जीव ही कर्त्तव्यअकर्त्तव्य को पहचान पाते हैं । धर्म-अधर्म का ज्ञान अधिकांश को नहीं हैं। पूर्व जन्म के सुकृत के फलस्वरूप विवेक का लाभ कर सकने वाले बहुत ही कम प्राणी हैं। विरले ही जीवों को ज्ञान प्राप्त होता है और उनमें से भी किसी-किसी को ही ज्ञान के फल-विरति-की प्राप्ति होती है। जीवन को पतन के मार्ग पर ले जाने वाले साधनों से यदि विरति उत्पन्न न हुई तो प्राप्त हुआ विपुल ज्ञान भी. निष्फल है क्योंकि कहा है . नाणस्स फलं विरई (प्राकृत) ज्ञानस्य फलं. विरतिः (संस्कृत) ज्ञान की सफलता त्याग में है। जिन पदार्थों और जिन आन्तरिक विकारों को हम हेय समझते हैं, अकल्याणकर मानते हैं और घोर दुःख का कारण जानते हैं, उनका भी यदि त्याग नहीं कर सकते तो वह ज्ञान किस मर्ज की दवा है ? उसका क्या फल मिला ? ऐसे ज्ञान को महापुरुष ज्ञान ही नहीं 2 मानते। सर्प को सामने आते देख कौन ज्ञानवान-समझदार-मनुष्य बचने के .. .. लिए दूर नहीं भाग जाता ? केवल नासमझ बालक ही सर्प को देख कर भी ___ नहीं हटता है. इसी प्रकार विषय रूपी विषधर से. जो विमुख. नहीं होता, . समझना चाहिए कि वह संमभावार नहीं, नासमझ है । उसे वास्तविक ज्ञान की ।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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