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________________ १२६] बना कर रहते हैं । जब यकायक वृक्ष कटने लगते हैं तो उनके लिए प्रलय का सा समय आ जाता है । बेहाल हो जाते हैं । यह तो वृक्ष काटने की बात हुई किन्तु जहां वृक्ष काट कर कोयला बनाया जाता है वहाँ के प्राणियों का तो कहना ही क्या ! अतएव ऐसे निर्दयता पूर्ण कृत्य खरकर्म माने गए हैं। (३) साडी कम्मे (शकट कर्म )-इसका सम्बन्ध वन कर्म से है । गाडी आदि बना कर बेचने का धंधा करना शकटकर्म कहलाता है। अथवा गाड़ी चलाना सागडीकर्म है । श्रावक को यह धंधा भी नहीं करना चाहिए । यह भी महाहिंसा से युक्त कर्म है । इसके लिए वनस्पति का विशेष रूप से उच्छेद करना पड़ता है । जो गाड़ी, गाड़ा, रथ आदि बनाता है, वह बैलों और घोड़ों आदि की बाधा का भी कारण बनता है। उनके मारण, छेदन, बास और संताप का निमित्त होता है। गाड़ीवान के सामने दो बातें होती हैं । पशु पर दया और स्वामी की आज्ञा का पालन । परन्तु उसका अधिक लगाव और झुकाव मालिक की आज्ञा की ओर होता है, क्योंकि मालिक उसे आजीविका देता है । आज्ञा के उल्लंघन से वह रुष्ट होता है, उलहना देता है । पशु मूक है। अत्याचार करने पर भी वह उसका प्रतीकार नहीं कर सकता, कुछ बिगाड़ नहीं सकता । अतएव पशु के प्रति दयालु होने पर भी उसे स्वामी की आज्ञा का पालन करने के लिए उसके प्रति क रतापूर्ण व्यवहार करना पड़ता है । अतएव श्रावक ऐसी आजीविका नहीं करता जिससे पशुओं के प्रति निर्दयता का व्यवहार करना पड़े। कई लोग पशुओं की दौड़ की होड़ लगाते हैं और जो पशु दौड़ में विजयी होता है, उसके स्वामी को पुरस्कार मिलता है । घोड़ों की दौड़ आजकल भी होती है। किन्तु ऐसा करना उनकी जान के साथ खिलवाड़ करना है। मनुष्य अपनी उत्कंठा तथा कुतूहलवृत्ति का पोषरण करने के लिए पशुओं को साताता है और अनर्थदंड के पाप का भागी बनता है। स्मरण रखना चाहिए कि जहां आवश्यकता की पूर्ति नहीं है, वहां पशुओं के साथ
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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