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________________ ११२] हैं और मैं प्रसन्नता पूर्वक आपको अनुमति देना चाहती हूँ, किन्तु अनुमति पाने से पहले आपको मेरी एक छोटी-सी शर्त स्वीकार करनी होगी। शर्त यह है कि एक रत्न-जटित कंबल लाकर आप मुझे प्रदान करें। यह शर्त पूरी होते ही सारा रंग महल आप अपना ही समझिए । यही नहीं, मैं भी आपकी दासी होकर सेवा करूंगी। __मुनि कुछ हिचकिचाए । सोचने लगे-रत्नजटित कंबल कहां पाऊंगा ___ मैं ? यह विचार कर वे असमंजस में पड़ गए। ___रूपाकोशा ने उनके भाव को ताड़ कर कहा-आप चिन्ता में पड़ गए हैं? रत्नजटित कंबल नेपाल-नरेश के यहां मिलता है। अभ्यागत साधु-सन्तों को वे मुफ्त में ऐसे कंबल देते हैं। कंबल की कीमत तो कुछ देनी नहीं है, सिर्फ नेपाल तक जाने का साहस करना है। नेपाल जंगल प्रधान देना है और पैदल चलने वालों को पद-पद पर भय बना रहता है । अगर आप में इतनी निर्भयता हो तो ही वहां जाने का साहस कीजिएगा, अन्यथा रहने दीजिए। निर्भयता और साहस की बात सुनकर मुनि के हृदय में अहंकार जागा 1 सोचने लगे-भय को जीतने में कौन मेरी बराबरी कर सकता है ! मेरे पास साहस का जितना बल है, अन्य किसके पास हो सकता है ! रूपाकोशा की मांग मेरे लिए एक चुनौती है । इस चुनौती का सामना न किया तो मैंने संयम क्या पाला अब तक भाड़ ही झौंका समझना चाहिये। ___मुनि के मन में अज्ञान रूप में अनुराग के अंकुर फूट निकले थे, ऊपर से उन्हें चुनौती भी मिल गई। उनके ज्ञान की छाप राग की छाप से दब गई । विवेक पराजित हो गया, राग विजयी हो गया। निर्भयता, जो अब तक उनका भूपण थी, विवेक एवं समभाव के अभाव में दूषण बन गई। वह उन्हें पतन की ओर घसीटने लगी। हृदय में राग का जो तूफान उठा, उससे विवेक का दीपक बुझ गया। - नेपाल पहुँचना मामूली बात नहीं। वहां जीवन के उपभोग कीविलास की सामग्रियां कम हैं और वहां के निवासियों की आवश्यकताएं भी
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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