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________________ १०७ : जो श्रावकधर्म की आराधना करता है उसे चिन्तन करना है, विचार करना है, आत्मा को भारी बनाने वाले कार्यों को कम करना है और अपने . - लक्ष्य की ओर गति तीन करनी है। यह यांत्रिक पद्धति से चढ़ने का मार्ग नहीं है, जीवन तय करने का मार्ग है । यंत्र के सहारे भारी वस्तुएं ऊपर उठाली . जाती हैं, मगर भारी जीवन को ऊँचा उठाने के लिए कोई यंत्र नहीं है । . दूसरे के सहारे ऊँचा चढ़ना अस्थायी है, अल्पकालिक है। इस प्रकार चढ़ना वास्तविक चढ़ना नहीं है । अध्यात्म की उच्च, उच्चतर और उच्चतम भूमिका पर आत्मीय पुरुषार्थ से ही चढ़ा जाता है । भगवान् महावीर ने उच्च स्वर में घोष किया है 'तुममेव तुम मित्ता,' किं बहिया मित मिच्छसिः आचारांग । हे आत्मन् ! तू अपना मित्र आप ही है। क्यों बाहरी मित्र ( सहायक) को अपेक्षा रखता है। . . - भगवान् की स्वावलम्बन की इस उदात्त स्वर लहरी में जीवन का तेज और भोज भरा हुआ है। हमें भलीभांति समझ लेना चाहिए कि हमारा कल्याण और उत्थान हमारे ही प्रयत्न और पुरुषार्थ में निहित है। कल्याण और उत्थान भीख माँगने से नहीं मिलता। . __ 'जीवित प्राणी चलता है, मुर्दा घसोटा जाता है।'. - एंजिन दूर है तो मजदूर धक्का देकर डिब्बों को इधर उधर. कर देते हैं। या एंजिन ने धक्का दिया, डिब्बा थोड़ी दूर चला और रुक गया। उसमें पावर (शक्ति) नहीं है चलने की । वह दूसरे के सहारे चलने वाला है। इसी प्रकार सत्संगति का धक्का लगने पर थोड़ा आगे चला जा सकता है, मगर मंजिल तक पहुँचने के लिए तो निज का ही बल चाहिए। .. रेल की पटरियों पर चलने वाली ठेला गाड़ी में धक्का देकर गति लानी पड़ती है । वार-बार धक्का देने से उसमें वेग आता है। एक-दो स्टेशनों तक यो काम चल जाता है । डिब्बों को लेकर चलने की शक्ति उसमें नहीं है। क्या मानव को अपना जीवन ऐसा ही बनाना उचित है ? नहीं, उसे सजीव
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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