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________________ १०१] कर सकता तो वे दुर्जय काम-वासना को उस हद तक कैसे जीत सकेंगे ! इतना दुर्वल हृदय क्या उस घोर परीसह को जीतने में समर्थ हो सकेगा? . . एक गांव में एक भाई अपने आपको बड़े साहसी मानते थे। वे अक्सर कहां करते-भूत का क्या भय है ? मैं भूत के लिए भी भूत हूं। साहस का कोई भी कार्य कर सकता हूं। लोगों ने उनकी परीक्षा करने की ठानी। एक बार जब वे इसी प्रकार को डोंगे मार रहै ये, लोगों ने उनसे कहा अगर आप रात्रि के समय, श्मशान में जाकर, पीपल के पेड़ में कील ठोंक कर आजाएं तो समझें कि आप वास्तव में हिम्मत्तवर हैं । अन्यथा अपने मुंह से अपनी तारीफ के पुल बांधना कौन. बडी बात है ? . . वह महाशय जैसे वस्त्र पहने थे, वैसे ही श्मशान पहुँच गए । बात उन्हें चुभ गई थी और वे इस परीक्षा में सफल होकर अपना सिक्का जमा लेना चाहते थे। श्मशान में पहुँच कर उन्होंने पीपल के वृक्ष में कील भी गाड़ दी। किन्तु उतावलेपन में आदमी चूके बिना नहीं रहता। उतावलापन काम विगाड़ता है । जब उसने पीपल के मूल में कील ठोकी तो कपड़े का एक पल्ला भी उस कील में दव गया। वह अपना पल्ला छुड़ाने लगा पर वह छूटा नहीं। उसने समझ लिया-भूत ने मेरा पल्ला पकड़ लिया है। होशहवास गुम हो गए। भय का इतना तीव्र संचार हुया कि वे भाई वहीं पर ठार हो गये। धैर्य से काम लिया होता और अहंभाव मन में न आता तो उसका काम बन जाता, परन्तु अधैर्य, अहंकार एवं जोश के कारण उसका काम बिगड़ गया। सिंह गुफावासी मुनि के हृदय में भी अहंकार का विष घुला हुआ था। वे सोचते थे कि मेरे समान तपस्वी कौन है ? इस अहंकार को प्रेरणा से ही उन्होंने अनुमति चाही थी, मगर गुरुजी मौन रहे । वे जानते थे कि इसे सफलता मिलने वाली नहीं है। यह ईर्षा के वशीभूत होकर अब तक के किये पर पानी फेर देगा । तथापि हमेशा के लिए इसे अच्छी सीख मिल जाएगी।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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