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________________ आध्यात्मिक आलोक ___-81 दर्गणी मानव परिग्रह के पीछे हाय-हाय करते मरता है। किन्तु ज्ञानी भक्त मरते समय सद्गुणों का धन संभालता है । अतएव लड़की जैसे ससुराल से पिता के घर जाने में प्रसन्नचित्त होती है, वैसे वह भी परलोक की ओर हँसते-हँसते जाता और आनन्दित होता है । हर मानव को ऐसी ही साधना करनी चाहिए और ऐसी तैयारी रखनी चाहिए, जिससे कि वह हंसते-हंसते इस संसार से प्रस्थान कर सके। महामुनि स्थूलभद्र ने पूर्ण त्याग का जीवन व्यतीत किया; उनकी साधना में जीवन सुधार की कला थी । उनका जीवन आज भी धन्य-धन्य माना जाता है । भला जिनका जीवन बिगड़ा होगा, उनकी मृत्यु हँसते-हँसते कैसे हो सकती है । उसके लिए साधना की आवश्यकता है, वह संयम, श्रद्धा और विवेकपूर्ण होने पर ही हितकर हो सकती है। अन्यथा साधक के स्थान में मारक बन जाती है। आत्म-साधना की तो बात ही क्या ? व्यवहार के साधारण काम भी विवेक के बिना उपहास के कारण हो जाते हैं। एक सासू अपनी बहू को काम सिखा रही थी । झाडू निकालने के बाद सासू रोटी बनाने बैठी तो बहू बोली माँ ! यह तो मैं ही बना लुंगी और उसने परात में आटा लेकर लोटा भर पानी डाल दिया । पानी की अधिकता से आटा ढीला हो गया । बहू आकर सासू से कहने लगी कि रोटी तो नहीं बनती । सास ने कहा अच्छा ठहरो, थोड़ा पानी और डाल दें तो राबड़ी हो जाएगी । बहू न कहा पानी डालकर राबड़ी तो मैं ही बना दूंगी । उसने आटे को हाण्डी में डालकर पानी भर दिया और हण्डिया को चूल्हे पर रख कर चली आयी। आंच की तेजी से हण्डी में उफान आया और राब अग्नि की भेंट चढ़ गई। कुछ समय बाद बहूजी राब लेने को आयी तो देखा कि राब उफनने से चूल्हा बुझा पड़ा है । बची-खुची राब लेकर बुढ़िया के पास गई । सास राब देखते ही स्थिति समझ गई और प्रसाद के रूप में राब लेकर संतोष मान चुप हो गई। चूल्हे को साफ कर सासू जब राख डालने को तैयार हुई तो बहू . बोली-माताजी ? इतना तो हमें भी करने दो। कचरा डालने में क्या है ? इस पर सासू बोली, देखो बेटी ! भले आदमी . को देखकर गिराना । हाँ, कहकर बहजी गई और थोड़ी देर बाद एक भले आदमी को आते देखकर उस पर कचरा गिरा दिया । राहगीर बड़, नाराज हुआ । उसने कहा-एक भले घर की स्त्री होकर तमने जंगली को भी न शोभे ऐसा काम किया शर्म की बात है । शोर सुनकर बुढ़िया आयी और देखा तो बड़ा दुःख हुआ; हाँ, तो हर काम में विवेक की जरूरत है। :
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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