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________________ 63 आध्यात्मिक आलोक मिल गया, पैसे नदारद । पाए हुए में सन्तोष कर यात्री चला गया । सम्पन्न घर में ऐसा होने का कारण बच्चे में संस्कार का अभाव ही कहा जायेगा । यदि इस प्रकार की स्थिति रही और बच्चों में अच्छे संस्कार नहीं डाले गए तो निश्चय ही भविष्य भयावह बनेगा और मनुष्य जन्म पाने का कुछ भी लाभ नहीं होगा । जिस व्यक्ति ने लाखों रुपए कमाये किन्तु समाज में प्रतिष्ठा नहीं रही तो वह नुकसान में ही रहा, ऐसा समझना चाहिए । दिवालिए का कोई विश्वास नहीं करता । साख वाले को ही बाजार में सम्मान मिलता है । वास्तव में उसने बोया कम, किन्तु अधिक प्राप्त करना चाहा । आज कुछ लोग यह समझने लगे हैं कि चोरी में क्या बुरा है ? एक बार दो मित्रों में बात हो रही थी, एक ने कहा चोरी करना बुरा नहीं, चोरी करके पकड़ा जाना बुरा है, किन्तु यह गलत विचार है । भारतीय नीति में चोरी चाहे पकड़ी जाए या नहीं पकड़ी जाए, दोनों हालत में निन्दनीय, अशोभनीय और दण्डनीय कृत्य है। चोरी या अनीति का पैसा सुख शान्ति नहीं देता । वह किसी न किसी रूप में हाथ से निकल जाता है । कहावत भी है कि 'चोरी का धन मोरी में | मतलब यह कि साधक को चोरी से और खास कर बड़ी चोरी से सदा दूर रहना चाहिए । उसका जीवन संसार में प्रामाणिक एवं विश्वसनीय होना चाहिए । अज्ञान और कुसंगति से कई लोगों में पापाचार की आदतें पड़ जाती हैं और वे उसी में आनन्द मानने लगते हैं, किन्तु यह ठीक नहीं है । साधक को सतत् इस बात के लिए जागृत रहना चाहिए कि अपने जीवन में गलत व्यवहार का अवसर न आवे । यदि मनुष्य अपनी कुप्रवृत्तियों को वश में रखे तो जीवन उन्नत बना सकता है । भगवान् की आज्ञा में वे ही साधक आ सकेंगे जो दुर्गुणों को छोडेंगे और माया से सतत् दूर भागेगे । धर्म की महिमा अपार है । साधक धर्म पर आस्था रख कर अपना उभय लोक सुधार सकता है । किन्तु साथ ही यह ध्यान रखना चाहिये कि धर्म प्रदर्शन की चीज नहीं वह ग्रहण करने की चीज है, सिनेमा और प्रदर्शनी देखने से मन प्रसन्न हो जाता है, परन्तु स्वादिष्ट भोजन केवल सामने देखने को रखा जाय और खाने को न दिया जाय तो तुष्टि नहीं होगी और भूख भी नहीं मिटेगी । धार्मिक स्थल भी भोजनालय के समान हैं जहां भोजन पेट में रखने से प्रसन्नता होती है । धार्मिक जीवन के प्रभाव से मनुष्य चोरी आदि सकल दुष्प्रवृत्तियों से बचकर जीवन निर्माण कर सकता है। . __ भगवान महावीर स्वामी ने लोक अनुकम्पा हित श्रुत धर्म और चारित्र धर्म का उपदेश देकर जगत् का महान् उपकार किया है । इसके पालन से जीवन सफल
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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