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________________ 581 आध्यात्मिक आलोक लौकाशाह की समाज को सबसे बड़ी देन है-भूली हुई स्वाध्यायवृत्ति को पुनः जागृत करना । स्वाध्याय के अभाव में जीवन में विकार आ जाना स्वाभाविक है। रेशमी या अन्य किसी बढ़िया से बढ़िया वस्त्र को कितना ही संभाल कर रखा जाय, फिर भी कुछ दिनों में उसका रंग बदल जाएगा या उसमें दाग लग जाएंगे। विषय-कषाय का मूल स्रोत कायम है, अतएव मानव के गड़बड़ाने की संभावना बनी रहती है । किन्तु बातों से या सम्भाषण से काम नहीं चलेगा । अच्छे से अच्छे प्रस्ताव पास कर लेने से भी क्या होना-जाना है ? शासन ऊँचा उठेगा क्रियात्मक रूप देने से । पाँच वीर यदि दृढ़ संकल्प के साथ कार्य में जुट जाएँ तो पाँच सौ आदमियों से भी अधिक काम कर सकते हैं। लौकाशाह के विचारों का देश भर में फैलाव हुआ । सबकी हत्तंत्री झंकृत हुई । किन्तु प्रत्येक आन्दोलन कुछ समय के पश्चात मन्द पड़ जाता है, चिन्तनधारा भी धीमी हो जाती है । बीच में यदि कोई प्रभावशाली व्यक्ति उदित हो जाय तो समाज पुनः जागृत हो जाता है । ___ महिमा-पूजा के प्रलोभन में या प्रवाह में बहने से साधना विकृत हो जाती है। जो इस चक्कर में पड़ता है वह पतित हुए बिना नहीं रहता । वह फिर से . अधोगामी हो जाएगा । राजसन्मान की कामना जब अन्तर में उत्पन्न हो जाती है तो साधना का सारा चक्र बदल जाता है । इस तरह लौकाशाह के पश्चात् भी समय-समय पर क्रियोद्धार के लिए अनेक महात्मा सामने आए और उन्हीं का प्रताप है कि हम वीतराग की वाणी का लाभ आज ले रहे हैं । यह उन्हीं स्वाध्यायशील महर्षियों के कठिन परिश्रम का फल है। यह समझना बड़ी भूल होगी कि श्रुतरक्षा का भार साधुसमाज पर ही है, गृहस्थों पर नहीं । श्रमणवर्ग की अपेक्षा संघ एवं समाज पर श्रुतरक्षण का भार अधिक है । मुनियों की छोटीसी टुकड़ी इधर-उधर बिखरी हुई है । उनका सर्वत्र पहुँचना संभव नहीं है । गृहस्थ वर्ग को वीतराग की वाणी का प्रसार करने की अनेक सुविधाएँ प्राप्त हैं। उसके प्रसार का अर्थ यह है कि जिज्ञासुजनों को श्रुत की प्रतियां सुलभ हों, युगानुकूल भाषाशैली में उनका अनुवाद हो, उनके महत्व को प्रदर्शित करने वाली सामग्री प्रस्तुत हो, समालोचनात्मक एवं तुलनात्मक पद्धति से उनका अध्ययन, मनन करके उन पर सुन्दर प्रकाश डाला जाय, इत्यादि । छोटे से छोटे ग्रामों में भी आगम, उपलब्ध किये जाने चाहिए । वहां अगर स्वाध्याय चलता रहे तो साधु-सन्तों के न पहुँचने पर भी धार्मिक वातावरण बना रह सकता है।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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