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________________ 566 आध्यात्मिक आलोक तरह साध लिया जाता है तो कर्म बन्ध रुक जाता है। नया कर्मबन्ध रोक देने पर भी पूर्वबद्ध कर्मों की सत्ता बनी रहती है । उनसे पिण्ड छुड़ाने का उपाय तपश्चर्या है। तपश्चर्या से पूर्वबद्ध कर्म विनष्ट हो जाते हैं । भगवान् महावीर ने तपश्चर्या को विशाल और आन्तरिक स्वरूप प्रदान किया है । साधारण लोग समझते हैं कि भूखा रहना और शारीरिक कष्टों को सहन कर लेना ही तपस्या है। किन्तु यह समझ सही नहीं है । इन्द्रियों को उत्तेजित न होने देने के लिए अनशन भी आवश्यक है, ऊनोदरी अर्थात् भूख से कम खाना भी उपयोगी है, जिस्वा को संयत बनाने के लिए अमुक रसों का परित्याग भी करना चाहिए, ऐश-आराम का त्याग करना भी जरूरी है और इन सब की गणना तपस्या में है, किन्तु सत्साहित्य का पठन, चिन्तन, मनन करना, ध्यान करना अर्थात् बहिर्मुख वृत्ति का त्याग कर अपने मन को आत्मचिन्तन में संलग्न कर देना, उसकी चंचलता को दूर करने के लिए एकाग्र बनाने का प्रयत्न करना, निरीह भाव से सेवा करना, विनयपूर्ण व्यवहार करना, अकृत्य न होने देना और कदाचित् हो जाय तो उसके लिए प्रायश्चित्त-पश्चात्ताप करना, अपनी भूल को गुरुजनों के समक्ष सरल एवं निष्कपट भाव से प्रकट कर देना, इत्यादि भी तपस्या के ही रूप हैं । इससे आप समझ सकेंगे कि तपस्या कोई 'हौआ नहीं है, बल्कि उत्तम जीवन बनाने के लिए आवश्यक और अनिवार्य विधि है। जिसके जीवन में संयम और तप को जितना अधिक महत्व मिलता है, उसका जीवन उतना ही महान बनता है । संयम और तप सिर्फ साधु-सन्तों की चीजें हैं, इस धारणा को समाप्त किया जाना चाहिए | गृहस्थ हो अथवा गृहत्यागी, जो भी अपने जीवन को पवित्र और सुखमय बनाना चाहता है, उसे इनको स्थान देना चाहिए। संयम एवं तप से विहीन जीवन किसी भी क्षेत्र में सराहनीय नहीं बन सकता। कुटुम्ब, समाज, देश आदि की दृष्टि से भी वही जीवन धन्य माना जा सकता है जिसमें संयम और तप के तत्व विद्यमान हों । मोटर कितनी ही मुल्यवान क्यों न हो. अगर उसमें 'ब्रेक' नहीं है तो किस काम की ? ब्रेक विहीन मोटर सवारियों के प्राणों को ले बैठेगी । इसी तरह संयम जीवन का ब्रेक है । जिस मानव-जीवन में संयम का ब्रेक नहीं, वह आत्मा को डुबा देने के सिवाय और क्या कर सकता है ? मोटर के ब्रेक की तरह संयम जीवन की गति-विधि को नियन्त्रित करता है और जब जीवन नियन्त्रण में रहता है तो वह नूतन कर्मबन्ध से बच जाता है । तपस्या पूर्वसंचित कर्मों का विनाश करती है। इस प्रकार नूतन कर्म बंधनिरोध और पूर्वार्जित कर्मनिर्जरा होने से आत्मा का कार्मिक भार हल्का होने लगता है और
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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