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________________ आध्यात्मिक आलोक 559 जीवन में अनेक प्रकार की टक्करें लगती रहती हैं, उनसे पूरी तरह बचना संभव नहीं है, किन्तु टक्करें लगने पर भी उनसे आहत न होने का उपाय सामायिक है । आप जानते हैं कि मनुष्य जब रंज की हालत में आता है तो अपने आपको संसार में सबसे अधिक दुःखी मानने लगता है और आदरणीय का आदर करना एवं वन्दनीय को वन्दन करना भी भूल जाता है । इस प्रकार विषमता की स्थिति में पड़कर वह दोलायमान होता रहता है और अपने कर्तव्य का पालन ठीक तरह नहीं कर पाता है । इससे बचने के लिए और सन्तुलित मानसिक स्थिति बनाये रखने के लिए सामायिक साधना ही उपयोगी होती है । जो खुशी के प्रसंग पर उन्माद का शिकार हो जाता है और दुःख में आपा भूलकर विलाप करता है, वह इहलोक और परलोक दोनों का नहीं रहता । युद्ध के समय सैनिक यदि घबरा जाता है, धैर्य गँवा बैठता है तो पीछे हट जाता है और यदि सन्तुलित अवस्था कायम रखता है तो शत्रु का सामना कर सकता है। कौटुम्बिक मामलों में यदि सन्तुलन बिगाड़ दिया जाय तो घरू व्यवहार बिगड़ जाता है और वह कुटुम्ब छिन्नभिन्न होकर बिखर जाता है। ___ मानसिक दशा सन्तुलित न हो तो ज्ञानी पुरुष कुछ समय टाल कर बाद में जवाब देता है । शास्त्र, अध्यात्मशिक्षा सामायिकसाधना ही मन को सन्तुलित रखना सिखा सकते हैं। शम की स्थिति प्राप्त करने के लिए सामायिक साधना चाहिए । काम, क्रोध, मोह, माया आदि के कुसंस्कार इतने गहरे होते हैं कि उनकी जड़ें उखाड़ने का दीर्घकाल तक प्रयास करने पर भी वे कभी-कभी उभर आते हैं | अध्यात्मसाधना में निरत एकान साधक भी कभी-कभी उनके प्रभाव में आ जाता है । कभी कोई निमित पाकर तृष्णा या काम की आग भड़क उठती है। यह आग अनादिकाल से जीव को सन्तप्त किये हुए है । इसे शान्त करने का उपाय क्या है ? सामायिक साधना रूपी जल के बिना यह ठंडी नहीं हो सकती । भट्टी पर चढ़ाए हुए उबलते पानी को भट्टी से अलग हटा देने से ही उसमें शीतलता आती है । इसी प्रकार नाना विध मानसिक सन्तापों से सन्तप्त मानव सामायिक साधना करके ही शान्तिलाभ प्राप्त कर सकता है। प्राणी के अन्तर में कषाय की जो ज्वाला सतत प्रज्वलित रहती है, उसे शान्त किये बिना वास्तविक शान्ति कदापि प्राप्त नहीं हो सकती । ऊपर का कोई उपचार वहाँ काम नहीं आ सकता । उसके लिए तो सामायिक साधना ही उपयोगी हो सकती है । अनवरत साधना चालू रहने से स्थायी शान्ति का लाभ मिलेगा । साधना ज्यों-ज्यों सबल होती जाएगी, साधक की आनन्दानुभूति भी त्यों-त्यों ही बढ़ती जाएगी। इसीलिए कहा गया है
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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