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________________ 556 आध्यात्मिक आलोक व्यापक हित में विचार करने की प्रेरणा देते हैं और सब के हित में अपना हित मानने की बुद्धि प्रदान करते हैं। अतएव राष्ट्र के ठोस और आधारभूत हित और संरक्षण में उनका यह योगदान असाधारण है। प्रत्येक वर्ग का कर्तव्य पृथक-पृथक् होता है । मजदूर अपनी जगह रह कर और अपने कर्तव्य का पालन करके देश की सेवा करता है। किसान अधिक उपज बढ़ाकर सेवा करता है उद्योगपति अपने ढंग से सेवा कर सकता है । अगर सभी वर्ग एक ही ढंग अखत्यार कर लें तो देश का काम चल नहीं सकता । इसी प्रकार सन्तसमाज भी अपनी मर्यादा में रह कर ही देश की सेवा करता है । वह देशवासियों में उन सद्गुणों के विकास के लिए प्रयत्न करता है जिनके अभाव में देश की आत्मा सबल नहीं हो सकती और सबल हुए बिना देश की सुरक्षा भी संभव नहीं है । ___ जम्बूद्वीप के चारों ओर खाई की तरह फैला हुआ समुद्र जम्बूद्वीप को आप्लावित क्यों नहीं कर देता ? यह प्रश्न श्रीगौतम ने भगवान् महावीर से पूछा । महावीर स्वामी ने उत्तर दिया यह अनादिकालिक मर्यादा है । इसके अतिरिक्त इसमें अनेक सन्तों, सतियों और भक्तों की विद्यमानता है, इस कारण भी यह आप्लावित नहीं होता । तेजस्वी साधना वाला साधकजन यदि किसी नगर में मौजूद हो तो वह उस नगर को बचा सकता है । अगर सभी लोग अपने आत्मबल को बढ़ावें तो देश का कल्याण होगा । संकट काल में आध्यात्मिक बल बहुत लाभकारी हो सकता है। मैं आपको यही प्रेरणा देना चाहता हूँ कि 'आगमों के आधार पर चलो और आर्य संस्कृति को भूलने के बजाय अपने जीवन में उसको अधिक से अधिक स्थान दो । शासक और शासित दोनों उदारतापूर्वक कार्य करें, समझदारी अपनाएँ जिससे किसी की भूल से किसी को हानि न हो । देश ऋण के भार से दबा जा रहा हो और देश की प्रजा में भोग-विलास की मनोवृत्ति बढ़ती जाए, तो इससे किसी का कल्याण नहीं होगा । ऐसे समय में प्रत्येक देशवासी का कर्तव्य है कि वह देश के हित में ही अपना हित समझे, देश के उत्थान-पतन में अपना उत्थान-पतन माने, देश के गौरव में ही अपना गौरव अनुभव करे और सादगी, संयम तथा त्याग भावना को अधिक से अधिक अपनाए । राष्ट्रीय संकट के समय, उससे लाभ उठा कर व्यक्तिगत स्वार्थसाधन की बात सोचना अपनी आत्मा को गिराना है और अपने पैरों पर आप ही. कुठाराघात करना है । समूह के मंगल में ही व्यक्ति का मंगल है ।। द्रत और नियम का संबल लेकर आध्यात्मिक विचार, सदाचार, सच्चाई और वाणी का बल बढ़ाकर प्रत्येक नागरिक यदि अपने जीवन को ऊँचा उठाएगा तो स्वतः ही समाज और देश का कल्याण होगा और आन्तरिक जीवन भी मंगलमय बन जाएगा !
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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