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________________ 554 आध्यात्मिक आलोक : भारत की संस्कृति उच्चकोटि की, उदार और पवित्र है । उसने अपनी संस्कृति और नीति की पवित्रता के कारण ही कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया। . उसने विश्वशान्ति और विश्वहित की ही सदा कामना की है । इस नीति को बहुत लोग भारत की दुर्बलता समझते हैं, यह उनका भ्रम है । भारत की आत्मा दुर्बल नहीं है । वह आक्रमणकारी को सदैव करारा उत्तर देता रहा है और जो उससे टकराएगा, कभी सफल नहीं हो पाएगा। इसी विश्वास के साथ भारतीय प्रजा को अनैतिकता से बचना चाहिए और देश के गौरव के प्रतिकूल कोई कार्य नहीं करना चाहिए । अगर भारत की जनता अनैतिकता, अधार्मिकता और स्वार्थपरायणता से ऊपर उठेगी तो निश्चय समझिए कि संसार की कोई भी शक्ति उसे नीचा नहीं दिखा सकती। उसका गौरव सदा अक्षुण्ण रहेगा, उसकी प्रतिष्ठा सदा बढ़ती रहेगी और वह संसार को आदर्श राष्ट्रीय नीति का उज्ज्वल संदेश देता रहेगा। भारत की एक कमजोरी खाद्यान्न की कमी कही जाती है । यह कमी वास्तव में है या लालची लोगों ने, अधिक मुनाफा कमाने के उद्देश्य से अन्न का संग्रह करके उत्पन्न कर दी है, यह कहना कठिन है । लेकिन यदि वह वास्तविक है तो भी उसके प्रतीकार का उपाय है और ऐसा उपाय है जिसकी हिमायत हजारों-लाखों वर्षों से भारत के ऋषि-मुनि करते आए हैं । महीने में कुछ उपवास करने की भारतीय धार्मिक परम्परा रही है और कुछ लोग आज भी इसका पालन करते हैं। इसे व्यापक रूप दिया जाय तो सारी समस्या सहज ही हल हो जायगी । मगर खाद्यान्न की समस्या को हल करना उसका आनुषंगिक फल ही समझना चाहिए । वास्तव में उपवास का असली फल आत्मशुद्धि है | आत्मशुद्धि से शुभ भाव की वृद्धि होती है, आत्मिक शक्ति बढ़ती है और उससे जीवन में जागृति आती है । संसार के प्राणी मात्र को आत्मवत् मानने की प्रेरणा देने वाली भूमि इस प्रकार के उदात्त और पावन उपायों को अपना कर ही अपनी विशेषता एवं गुरुता कायम रख सकती है। दुःख की घड़ियों में मनुष्य को भय होता है । गांव-गांव, नगर-नगर और झोंपड़ी झोंपड़ी में नास्तिक लोग भी सोचने लगे थे कि न जाने इस अष्टग्रही से क्या गज़ब होने वाला है ? लाखों का अन्न लुटाया गया, भजन-कीर्तन हुए। ये चीजें भय की भावना से हुईं । उस समय केवल आशंकित भय था, मगर आज वास्तविक भय उपस्थित है। हमारे नीतिकार कहते हैं तावद् भयस्य भेतव्यं, यावद् भयमनागतम् । . आगतं तु भयं वीक्ष्य, नरः कुर्याद्यचौचितम् ।।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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