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________________ 551 में है आध्यात्मिक आलोक देना चाहिए । भारतीयों की सबसे बड़ी गलती यह है कि स्वाधीनता पाने के पश्चात् उन्होंने नैतिकता को एकदम विस्मृत कर दिया है । पश्चिम के प्रभाव में आकर भारत ने अपनी मौलिक मर्यादा और धर्मसंस्कृति को त्याग दिया है तथा भक्ष्य-अभक्ष्य, गम्य-अगम्य और पाप-पुण्य के विवेक को भुला दिया है । लोगों में लालच, तृष्णा और स्वार्थपरायणता बढ़ती जा रही है। अर्थलाभ ही मुख्य दृष्टिकोण बन गया है। इन सब कारणों से प्रामाणिकता गिर गई है तथा नैतिक दृष्टि से देश का पतन होता जा रहा है। इन सब बुराइयों को दूर किये बिना देश का सामूहिक जीवन समृद्ध और सुखमय नहीं बन सकता और इन बुराइयों को दूर करने का सर्वोत्तम उपाय देश-जाति आदि दस प्रकार के धर्म की शरण में जाना है। धर्म की रक्षा करना अपनी रक्षा करना है और धर्म का विनाश करना । आत्मविनाश को आह्वान करना है। नीतिकार ने ठीक ही कहा है धर्म एव हतो हन्ति, धर्मो रक्षति रक्षितः । निस्सन्देह आज देश पर संकट के बादल मँडरा रहे हैं (उस समय चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया था सम्पादक) परन्तु यह संकट भी वरदान सिद्ध हो सकता है यदि हम उससे सही शिक्षा लें। हमें इस संकट के समय धैर्य रखना है और इससे प्रेरणा लेनी है । अतीत की भूलों को दूर करना है और नवीन जीवन का सूत्रपात करना है । "नवीन जीवन' कहने का कारण केवल यही है कि हम उस जीवन को भूल गये हैं, अन्यथा वह प्राचीन जीवन ही है जिसमें प्रत्येक वर्ग अपने-अपने धर्म का पालन करता था । ___आज संकट की इन घड़ियों में देश के सभी राजनीतिक दल एक सूत्र में आबद्ध हो गए हैं। सभी वर्गों के नेता यह अनुभव करने लगे हैं कि एकता के द्वारा ही राष्ट्रीय संकट को सफलता के साथ पार किया जा सकता है । धर्म, जाति, प्रान्त, भाषा या किसी अन्य आधार से उत्पन्न कटुता के वातावरण को समाप्त कर बन्धुता, प्रीति और एकता की भावना का विकास किया गया तो देश का मनोबल बढ़ेगा और सारा संकट टल जायगा । यदि कोई देश परास्त होता है तो वह भीतर की गड़बड़ से परास्त होता है। जिस देश की जनता में हार्दिक एकता हो उसे कोई परास्त नहीं कर सकता । वह आक्रमणकारी को निकाल बाहर कर देगा। किसी भी संगठन को शुद्ध बनाये रखने के लिए नैतिकता अनिवार्य रूप से आवश्यक है । कृषक, श्रमिक, शासक, व्यवसायी आदि सभी अपने-अपने कर्तव्य के प्रात प्रामाणिक रहें, अप्रामाणिकता और वैयक्तिक स्वार्थ को त्याग दें और उनमें
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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