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________________ आध्यात्मिक आलोक 549 ज्वालाओं में भस्म होते हैं और थोड़ी ही देर में घोर प्रलय का दृश्य उपस्थित हो जाता है । ऐसी स्थिति में युद्ध की बात कहना और किसी पर युद्ध थोपना बड़ी से बड़ी मूर्खता है। ___ संसार के कतिपय शान्ति प्रेमियों ने इस बुराई की गहराई को समझा है । उन्होंने आवाज बुलन्द भी की है कि युद्ध बंद करो, निशस्त्रीकरण को अपनाओ और संयुक्तराष्ट्र संघ जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्था के द्वारा अपने मतभेदों को दूर करो। मगर यह आवाज अभी तक कारगर साबित नहीं हो सकी । इसके अनेक कारण हैं। प्रथम तो कुछ लोग शान्ति में विश्वास ही नहीं करते और वे सदैव लड़ने की कोशिशें करते रहते हैं। दूसरे संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसी जिम्मेवार संस्था को जैसा निष्पक्ष और न्यायशील होना चाहिए, वह वैसी नहीं है । वह भी बड़े राष्ट्रों के स्वार्थपूर्ण दृष्टिकोण से संचालित होती है। इस कारण सध्या न्याय करने में असफल रही है। मगर इन कारणों के अतिरिक्त सबसे बड़ा जो कारण है, वह मैं मानता हूँ कि धर्मभावना की कमी है। कोई भी राजनैतिक समाधान तब तक स्थायी और कार्यकारी नहीं हो सकता जब तक कि उसे धार्मिक रूप में मान्य न किया जाय । राजनैतिक समाधान दिमाग को ही प्रभावित करता है, जब कि धार्मिक समाधान आत्मा को स्पर्श करता है और इसी कारण उसका प्रभाव स्थायी होता है । हृदय की शुद्धि के बिना बाहर का कोई भी प्रयास सफल नहीं हो सकता । विश्वशान्ति के अन्तर्राष्ट्रीय प्रयत्नों के बावजूद लड़ाइयां हो रही हैं और होती रहेंगी। उनके रुकने का एक ही अमोघ उपाय है और वह यही है कि मानव हिंसा को ईश्वर के आदेश के रूप में निषिद्ध माने और अहिंसा एवं पारस्परिक सहयोग को धार्मिक विधान मान कर हृदय से उसको स्वीकार करे। मनुष्य को चाहिए कि वह आन्तरिक वासना को शान्त करे, ऊपर से ही शान्ति की बातें न करे । मैत्री के कोरे नारों से काम नहीं चल सकता, अन्तरतर में मित्रता की भावना उत्पन्न होनी चाहिए । शिक्षा पद्धति में नीति और धर्म का समावेश हुए बिना यह उद्देश्य पूर्ण नहीं. हो सकता। दूसरे के प्रति प्रेम का भाव न हो, स्वार्थ छल-कपट और रोष ही रोष हो तो विद्वेष की ही आग भड़केगी । भारत की संस्कृति विश्वबन्धुत्व की भावना से ओत-प्रोत है, मगर विदेशी प्रभाव से यहाँ की शिक्षा में परिवर्तन हो गया है। चीनी, यात्रियों (वेन सांग, फाहियान आदि) ने अपने यात्रा विवरणों में लिखा है कि मगध राज्य में मकानों पर ताला लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। इस बात से दूसरे देशों को आश्चर्य हुआ । उन यात्रियों को बतलाया गया कि भारत में चोरी की
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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