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________________ 543 आध्यात्मिक आलोक किया था । ७६ वर्ष की समग्र आयु पाई । स्थूलभद्र उनसे अधिक दीर्घजीवी हुए। उनकी आयु ९९ वर्ष की हुई । भद्रबाहु के पश्चात् ४५ वर्ष तक स्थूलभद्र ने जैन संघ का नेतृत्व किया । अपनी विमल साधना से साधु-साध्वी वर्ग को संयम के पथ पर चलाते हुए कुशलतापूर्वक उन्होंने शासन का संचालन किया । जिनशासन में वह . काल परम्परा भेदों या गच्छ भेदों का नहीं था । दस पूर्वो के ज्ञाता को वादी और चौदह पूर्वो के ज्ञाता को श्रुतकेवली कहा जाता है । श्रुतकेवली भद्रबाहु के संबंध में काफी अन्वेषण किया जा चुका है। इनके अतिरिक्त एक भद्रबाहु दूसरे भी हुए हैं । वे निमित्त वेत्ता भद्रबाहु माने गये हैं श्रुतकेवली के ज्ञान में निमित्तज्ञान भी उस ज्ञान के अन्तर्गत रहता है, परन्तु श्रुतकेवली उसे प्रकट नहीं करते। भद्रबाहु के साथ चन्द्रगुप्त का संबंध बतलाया जाता है । चंद्रगुप्त भी एक महापुरुष हो गए हैं। आज हमें श्रुत का जो भी अंश उपलब्ध है, वह इन्हीं सब महामनीषी आचार्यों की ज्ञानाराधना का सुफल है । इन महान आत्माओं ने उस युग में श्रुत का संरक्षण किया जब लेखन की परम्परा हमारे यहाँ प्रचलित नहीं हुई थी । आज तो अनेकों साधन उपलब्ध हैं और श्रुत सभी के लिए सुलभ है। ऐसी स्थिति में हमारा कर्तव्य है कि हम इस श्रुत का श्रद्धा और भक्ति के साथ अध्ययन करें, दूसरों के अध्ययन में सहायक बनें और ऐसा करके अपने जीवन को ऊँचा उठावें । ज्ञातव्य विषयों का ज्ञान प्राप्त कर लेना ही पर्याप्त नहीं है, मगर जो उपादेय है आचरणीय है, उस पर आंचरण करें और जो त्याज्य है उसका त्याग करें । ज्ञान हमारा पथ-प्रदर्शन कर सकता है। वह भाव-आलोक है, मगर प्रदर्शित पथ पर चलने से ही मंजिल प्राप्त की जा सकती है । दीपक के प्रकाश से एक छात्र ज्ञानार्जन कर सकता है और कुसंस्कारों वाला दूसरा छात्र उसी प्रकाश से चोरी भी कर सकता है । दीपक दोनों के लिए समान है, दोनों को आलोक देता है । भगवान महावीर स्वामी द्वारा उपदिष्ट मार्ग पर हम यथा शक्ति चलें और चलने की अधिक से अधिक शक्ति संचित करें, यही इस जीवन का सर्वश्रेष्ठ साध्य है | आत्मा के शाश्वत कल्याण का द्वार खोलने की अमोघ चाबी भगवान की देशना है। कितने सौभाग्य और पुण्य के प्रभाव से हमें इसके श्रवण-मनन-आचरण करने की अनुकूल सामग्री आज मिली है। भव्य पुरुषो! प्रमाद मत करो । निस्सार वस्तुओं के लिए और अमंगलकारी प्रवृत्तियों में ही समय न
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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