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________________ आध्यात्मिक आलोक 517 तप में निरत हो गया । उसने शरीर सुखा दिया । अस्थियां ही शेष रह गईं। तब वह फिर गुरु के पास पहुँचा और समाधिमरण की अनुमति मांगी । गुरु बोले-अभी अवसर नहीं आया है। शिष्य फिर कठिन तपस्या करने लगा । अब उसे चलने-फिरने में उठने बैठने में यहाँ तक कि बोलने में भी कठिनाई होने लगी। उसने फिर गुरु से अनुमति माँगी । गुरु ने कहा अभी अवसर नहीं आया है । संलेखना करो। गुरु का वही पुराना उत्तर सुन कर शिष्य को इस बार रोष आ गया । उसने अपनी उंगली तोड़ कर बतलाया कि देखिये, मेरे शरीर में रुधिर नहीं रह गया है। गुरु ने शान्ति और वात्सल्य से समझाया कि संलेखना करने का अर्थ कषाय का त्याग करना है | काय का त्याग करने पर भी कषाय का त्याग किये बिना आत्महित नहीं होता। शिष्य समझ गया । उसे अपनी भूल मालूम हो गई । वास्तव में मृत्यु कलाविद वही है जो वीतराग दशा में समभावपूर्वक शरीर का उत्सर्ग करता है। कषाय को कृश करना संलेखना है । कषाय को कृश कर देने पर मृत्यु का अनिष्ट रूप नहीं रह जाता । उस समय मृत्यु कलात्मक बन जाती है, जिसे समाधिमरण कहते हैं । हजारों-लाखों में कोई विरला ही व्यक्ति समाधिमरण का अधिकारी होता है । अधिकांश लोग तो कषायों से ग्रस्त होकर हाय-हाय करते ही मरते हैं । जिनका जीवन साधना में व्यतीत हुआ, जिन्होंने काले कारनामों से अपना मुँह मोड़ लिया या जिनके जीवन में उज्ज्वलता रही, उन्हीं को मृत्यु-सुधार का अवसर मिलता है । उनकी भूमिका तैयार होती है अतएव कोई गड़बड़ पैदा करने वाला निमित्त न मिल गया तो उनकी मृत्यु सुधर जाती है। परीक्षा में उत्तीर्ण होना या अनुत्तीर्ण होना तीन घण्टे के कर्तृत्व पर निर्भर है । जिसने तीन घण्टों में सही-सही उत्तर लिख दिये उसे सफलता अवश्य मिलती है। मगर सही उत्तर वही लिख सकेगा जिसने पहले अभ्यास कर रखा हो, पूर्वाभ्यास के अभाव में केवल तीन घंटे के श्रम से उत्तीर्णता प्राप्त करना संभव नहीं है । इसी प्रकार समाधिमरण भी एक कठोर परीक्षा है । इसमें उत्तीर्ण होने के लिए जीवन व्यापी अभ्यास की आवश्यकता है । अतएव जो अपनी मृत्यु को सुधारना चाहते हों उन्हें अपना जीवन सुधारना होगा । जीवन को सुधारे बिना मृत्यु को सुधारने की आशा रखने वालों को निराश होना पड़ेगा। ___ आई. ए. एस. जैसी परीक्षाओं में साक्षात्कारपरीक्षा भी होती है । उसमें प्रत्येक प्रत्याशी को संक्षिप्त मौखिक परीक्षा देनी पड़ती है जिसे अंग्रेजी भाषा में
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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