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________________ 508 आध्यात्मिक आलोक आचार्य ने अपने ज्ञान का उपयोग लगाकर कहा-"वरदत्त ने भी ज्ञान के प्रति दुर्भावना रखी थी। इसके पूर्व जीवन में ज्ञान के प्रति घोर उदासीनता की वृत्ति थी। श्रीपुर नगर में वसु नाम का सेठ था। उसके दो पुत्र थे-वसुसार और वसुदेव। वे कुसंगति में पड़कर दुर्व्यसनी हो गये। शिकार करने लगे। वन में विचरण करने वाले और निरपराध जीवों की हत्या करने में आनन्द मानने लगे। एक बार वन में सहसा उन्हें एक मुनिराज के दर्शन हो गये। पूर्व संचित पुण्य का उदय आया और सन्त का समागम हुआ । इन कारणों से दोनों भाइयों के चित्त में वैराग्य उत्पन्न हो गया। दोनों पिता की अनुमति प्राप्त करके दीक्षित हो गये, दोनों चरित्र की आराधना करने लगे । शुद्ध चारित्र के पालन के साथ वसुदेव के हृदय में अपने गुरु के प्रति . श्रद्धाभाव था। उसने ज्ञानार्जन कर लिया। कुछ समय पश्चात् गुरुजी का स्वर्गवास होने पर वह आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुआ। शासन सूत्र उसके हाथ में आ गया। उधर वसुसार की आत्मा में महामोह का उदय हुआ। वह खा-पीकर पड़ा रहता, संत कभी प्रेरणा करते तो कहता कि "निद्रा में सब पापों की निवृत्ति हो जाती है" निद्रा के समय मनुष्य न झूठ बोलता है, न चोरी करता है, न अब्रह्म का सेवन करता है, न क्रोधादि करता है, अतएव सभी पापों से बच जाता है, इस प्रकार की भ्रान्त धारणा उसके मन में पैठ गयी। वसुसार अपना अधिक से अधिक समय निद्रा में व्यतीत करने लगा और कहने लगा-सुषुप्ति से मन वचन काय की सुन्दर गुप्ति होती है। जागरण की स्थिति में योगों का संवरण नहीं होता। ज्ञानोपासना आदि सभी साधनाओं में खटपट होती है, अतएव शयन साधना ही सर्वोत्तम है। अतएव मैं अधिक से अधिक समय निद्रा में व्यतीत करना ही हितकर समझता हूं। वसुदेव नै गुरुभक्ति के कारण गंभीर तत्वज्ञान प्राप्त किया था । अतः वह आचार्य पद पर आसीन हो गये थे । जिज्ञासु सन्त सदा उन्हें घेरे रहते थे । कभी कोई वाचना लेने के लिये आता तो कोई शंका के समाधान के लिये। उन्हें क्षण भर का भी अवकाश नहीं मिलता । प्रातःकाल से लेकर सोने के समय तक ज्ञानाराधक साधु-सन्तों की भीड़ लगी रहती । मानसिक और शारीरिक श्रम के कारण वासुदेव थक कर चूर हो जाते थे। सहसा उनको विचार आया कि छोटा भाई वसुसार ज्ञान नहीं पढ़ा, वह बड़े आराम से दिन गुजारता है। मैंने सोखा, पढ़ा तो मुझे क्षण भर भी आराम नहीं।' विद्वानों ने टोक ही कहा है
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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