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________________ [९] ... दुःख मुक्ति का उपाय साधक जब ज्ञान का प्रकाश पा लेता है तब वह भौतिकता के सारे लुभावने आकर्षणों से दूर हट जाता है । किन्तु जैसे दीपक का प्रकाश हवा से झिलमिला जाता है, वैसे ही ज्ञान का प्रकाश भी बाधक तत्वों से कभी विचलित हो सकता है और उस समय ज्ञान की ज्योति में मन्दता भी आ सकती है। सत्पुरुषों ने अनुभव किया कि मानव मन में ज्ञान की ज्योति अखण्ड रहे, इसके लिए निरन्तर सत्संग, स्वाध्याय और साधना की स्नेह-धारा चलती रहनी चाहिए, ताकि मोह के झोकों में उसका ज्ञान-प्रदीप बुझ न जाए । आचार्य भद्रबाहु ने कहा जीवो पमायबहुलो, बहुसोवि य बहुविहेसु अत्थेसु । एएण कारणेणं, बहुसो सामाइअं कुज्जा ।।. जीव प्रमाद बहुल होने से योग्य सत्संग के अभाव में चटपट ही इधर-उधर भटक जाता है किन्तु सत्संग और स्वाध्याय में शास्त्रों का परिशीलन होने से ज्ञान का प्रकाश क्षीण नहीं होता । सत्संग और शास्त्र निमित्त हैं, जो सद्विचारों को जागृत करते हैं, एवं जीवन सुधार में प्रेरणाभूत बनते हैं । मगर जीवन का ऊंचा उठना साधक के पुरुषार्थ पर ही निर्भर है। जिसमें स्वयं का बल नहीं होगा, निमित्त उसको लक्ष्य पर नहीं पहुंचा सकता। ____ यह संसार आकर्षणों का भण्डार है, जिसमें भांति-भाति के आकर्षण भरे पड़े हैं किन्तु उनमें कनक और कान्ता रूप दो प्रमुख आकर्षण हैं । इनके प्रभाव से बचना कोई आसान नहीं है । मनुष्य वनराज के भीषण प्रहार से कदाचित् आत्म-रक्षा कर सकने में सफल हो सकता है, मगर इन दो के आगे धैर्य बनाए रखना, परम साहस का काम है । कनक और कामिनी की नींव पर आधारित परिवार भी कोई
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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