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________________ को नयी दिशा प्रदान की। पाश्चात्य भोगवादी संस्कृति से मुक्ति के लिये आचार्यश्री ने जीवनभर शंखनाद किया और अपनी आध्यात्म दुंदुभी,से दुखी-पीड़ित-प्रताड़ित मानवता को आध्यात्म की सही दिशा प्रदान की। . आचार्यश्री हस्तीमल म. सा. ने सन् १९६३ ई. में सैलाना (मध्यप्रदेश) में चातुर्मास किया। उस समय सुश्रावक प्यारचन्द जी राँका ने चातुर्मास में व्याख्यान लिपिबद्ध कराने की व्यवस्था की। इसे लिपिबद्ध श्री मुरलीमनोहर पाण्डेय एम. ए. [हिन्दी एवं राजनीति विज्ञान] प्राध्यापक, हायर सैकण्डरी स्कूल सैलाना ने किया। श्री शशिकान्त जी झा ने श्री पाण्डेय जी की पाण्डुलिपि का सम्पादन किया और 'आध्यात्मिक आलोक' का प्रकाशन हुआ। प्रथम संस्करण में पैतालीस प्रवचनों - प्रथम खण्ड में पन्द्रह प्रवचन और शेष को द्वितीय खण्ड में स्थान दिया गया। इसके पश्चात 'आध्यात्मिक आलोक' के तृतीय और चतुर्थ खण्ड का प्रकाशन श्री शशिकान्त झा के सम्पादन में वि. सं. २०२३ में हुआ। तत्पश्चात् सन् १९८९ ई. में इसका पुनः प्रकाशन संयुक्त संस्करण में मण्डल द्वारा हुआ। आध्यात्मिक आलोक के इस प्रकाशन में सर्वश्री गजसिंह जी राठौड़, और प्रेमराज जी बोगावत का निस्वार्थ सहयोग रहा। वि. सं. २०४८ वैसाख शुक्ला अष्टमी को जैन जगत का यह जाज्वल्यमान सूर्य १३ दिवसों की संल्लेखना के पश्चात इस पार्थिव जगत से महाप्रयाण कर गया। आचार्यश्री की प्रथम पुण्यतिथि समस्त जैन समाज के लिये सांकल्पित निष्ठा की पवित्र राशि है, जो हमें कर्तव्य और दायित्व के प्रति सक्रिय और सजग रहने के लिये प्रबुद्ध करती है। सम्यज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर ने इस दिवस को आचार्यश्री की सार्वकालिक देशना के अनुरूप मनाने का निश्चय किया है। इस पवित्र पुण्यतिथि को पूर्व प्रकाशित 'आध्यात्मिक आलोक' का पुनः प्रकाशन इसकी एक महत्वपूर्ण कड़ी है। वैसाख शुक्ला अष्टमी वि.सम्वत् २०४९ सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल जयपुर।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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