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________________ [७१ ] वीर निर्माण वर्तमान में जो धर्मशासन चल रहा है, उसके अधिपति चरम तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी हैं । शासन का माध्यम भगवान् की वह वाणी है कि उनके प्रधान शिष्य गणधरों ने शास्त्र का स्वरूप प्रदान किया और स्थविर भगवन्तो ने बाद में लिपिबद्ध किया । इस शासन के संचालक सूत्रधार शिष्य-प्रशिष्य परम्परा से होने वाले सन्त हैं। शासनपति हम सभी आत्म-कल्याण के अभिलाषियों के लिए सदा स्मरणीय हैं । अज्ञान के अनन्त-असीम अन्धकार में भटकते हुए सांसारिक प्राणियों को सम्यग्ज्ञान का आलोक प्रदान करने वाले वही हैं, इस कृतज्ञता के कारण तथा गुणों के प्रति आदर भावना की दृष्टि से भी वे स्मरणीय हैं। गुणों की दृष्टि से सभी तीर्थकर भगवान् समान होते हैं, अतएव सभी समान रूप से स्मरणीय हैं । भगवान् का स्मरण एक प्रकार से अपने असली स्वरुप का स्मरण है, क्योंकि आत्मा और परमात्मा में मौलिक रूप में कोई अन्तर नहीं है । मुक्त एवं संसारी आत्मा समान स्वभाव धारक है। जैसे सिद्ध भगवान् अनन्त ज्योति के पुंज हैं, अनन्त ज्ञान, दर्शन, वीर्य एवं सुख से परिपूर्ण हैं, निर्मल हैं, निर्मल आत्मपरिणति वाले हैं, उसी प्रकार संसार की सब आत्माएं भी हैं, कहा भी है: यः परमात्मा स एवाह, योऽहं स परमस्तथा । अहमेव मयाऽऽराध्यो, नान्यः कश्चिदिति स्थितिः ।। परमात्मा का जो स्वरूप है, वही मेरा स्वरूप है और जो मेरा स्वरूप है वही परमात्मा का । अतएव किसी अन्य की आराधना न करते हुए आत्मा की ही आराधना करना उचित है।। इस प्रकार मूलतः आत्मा-परमात्मा में समानता होने पर भी आज जो अन्तर दृष्टिगोचर हो रहा है, उसका कारण आवरण का होना और न होना है | जो आत्मा सम्यक् श्रद्धा के साथ, विवेक को आगे करके, साधना के क्षेत्र में अग्रसर
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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