SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 454
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 446 आध्यात्मिक आलोक शासनसूत्र संभाला । स्थूलभद्र भी निश्चल संकल्प के साथ उनके पास रहे । इस समय तक दस पूर्वो के लगभग का ज्ञान उन्हें हो चला था | भद्रबाहु स्वामी ने कुशलता के साथ शासन चलाना प्रारम्भ किया । स्थूलभद्र उनके सहायक थे। वे ओजस्वी, तेजस्वी और सूक्ष्म सिद्धान्तवेत्ता हो गए थे तथा भद्रबाहु के बाद आचार्य पद के योग्य समझे जाने लगे थे। आगम या किसी भी अन्य विषय का शब्दार्थ प्राप्त करके यदि चिन्तन न किया गया तो आत्मा की उन्नति नहीं हो सकेगी । पढ़ कर चिन्तन और मनन करने से ही जीवन में मोड़ आता है और मोड़ आने पर आत्मा का उत्थान होता है । पठित पाठ चिन्तन-मनन के द्वारा ही आत्मसात् या हृदयंगम होता है और वही ज्ञान सार्थक है जो आत्मसात् हो जाए । स्थूलभद्र अपने गुरु भद्रबाहु से वाचना लेकर बाद में अलग से चिन्तन करते और उसकी दृढ़ धारणा करने की कोशिश करते थे। ऐसा करने से उन्हें बहुत लाभ हुआ । ___ आप लोगों ने भी चातुर्मास में प्रतिदिन व्याख्यान श्रवण किया है । उसमें । से क्या और कितना ग्रहण किया, इस बात पर आपको विचार करना चाहिए । चातुर्मास की समाप्ति के दिन सन्निकट आ रहे हैं । देवालय का कबूतर नगाड़ा बजाने पर भी नहीं उड़ता परन्तु कुआँ का कबूतर साधारण आवाज से भी उड़ जाता है। हमें देवालय के कबूतर के समान नहीं होना चाहिए जिस पर कहने-सुनने. का कुछ असर ही नहीं पड़ता, बल्कि कुएं के कबूतर के समान बनना चाहिए । आत्महित की जो भी बात कर्णगोचर हो उसको विवेक के साथ अपनाना चाहिए । अपनाने से ही ज्ञान सार्थक होता है । अगर जीवन में कुछ भी न उतारा गया तो फिर कोरा ज्ञान किस मतलब का ? स्थूलभद्र की सात बहिनें भी थीं जो बड़ी बुद्धिशालिनी थीं । महामन्त्री शकटार ने उनके जीवन-निर्माण में कोई कसर नहीं उठा रखी थी। उसने सोने से शरीर को सुसज्जित करने की अपेक्षा ज्ञान से जीवन को मण्डित करना अधिक कल्याणकर समझा । उन बहिनों ने भी प्राप्त ज्ञान का सदुपयोग किया और संयम को ग्रहण किया । इस प्रकार वे ज्ञान के साथ संयम की साधना करने लगीं । सुशिक्षा और ज्ञान की उपसम्पदा प्राप्त कर लेने के कारण और साथ ही अपने भाई स्थूलभद्र के साधु हो जाने के कारण उन्होंने अपने जीवन को राग की ओर बढ़ाना छोड़ दिया । राग रोग है, ऐसा समझ कर उन्होंने विराग का मार्ग अपनाया-दीक्षा अंगीकार २ कर ली । यही नहीं, तप और संयम की आराधना करके ज्ञान की ज्योति प्राप्त की।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy