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________________ आध्यात्मिक आलोक 433 एक ठाकुर साहब की सवारी किसी गांव में होकर निकली । एक सूरदास अपने चबूतरे पर बैठा था । ठाकुर साहब ने कहा-"महाराज सूरदासजी, राम-राम ।" : सूरदास-"राजा महाराजा, राम-राम" दूसरे कामदार पीछे-पीछे निकले । उनके अभिवादन में सूरदास ने कहा-"कामदारां! राम-राम" उनके बाद दरोगा निकले तो सूरदास बोले-"दरोगा, राम-राम ।" अन्त में नौकर आये । उन्होंने सूरदास का अभिवादन किया-"अन्धे, राम-राम ।" सूरदास ने उत्तर में कहा-"गोला ! राम-राम ।" सूरदास देख नहीं सकता था कि पथिकों में कौन ठाकुर और कौन चाकर है, फिर भी वह उनके अभिवादन करने वाले वचनों को सुनकर ही समझ गया कि इनमें कौन क्या है ? वास्तव में सभ्य, कुलीन और समझदार व्यक्ति शिष्टतापूर्ण भाषा का प्रयोग करता है जब कि ओछा आदमी ओछी जबान का उपयोग करता है। ____ जो पुरुष व्रतों को अंगीकार करता है, वह अपनी वाणी का दुरुपयोग न करके सदुपयोग ही करता है । व्रती की नीति यह नहीं होती कि पहले गन्दगी को बढ़ने दे और फिर उसकी सफाई करे । वह गंदगी से पहले से ही दूर रहता है, नीतिकार ने कहा है प्रक्षालनाद्रि पंकस्य दूरादस्पर्शनं वरम्। पहले कीचड़ लगाकर उसे धोने की अपेक्षा कीचड़ से दूर रहना और उसे न लगने देना ही उत्तम है। भारत की संस्कृति आत्म चिन्तन प्रधान है । उसकी सम्पूर्ण दार्शनिक विचारधारा और आचार नीति आत्मा को ही केन्द्र बिन्दु मानकर चली है । पाश्चात्य देशों के आचार-विचार में यह बात नहीं है। उनकी दृष्टि सदा बहिर्मुख रहती है । भारतीय जन के मानस में आत्मा सम्बन्धी विचार रहता ही है, इस कारण वे उपासना, संध्या आदि के रूप में अन्तःशुद्धि की ओर कदम बढ़ाते हैं । पश्चिम वाले घर एवं फर्नीचर की हालत ऐसी रखते हैं जैसे कल ही दीवाली मनाई गई हो । दोनों दृष्टिकोणों को ध्यान में रखकर हमें सीख लेनी है और सोचना है कि मनुष्य के लिए · शाश्वत सुख और शान्ति का मार्ग क्या है ? - मनुष्य को स्वभावतः एक अनमोल रत्न प्राप्त है जो चिन्तामणि से भी अधिक महत्वपूर्ण है । अगर उसका सही उपयोग किया जाय तो कहीं और कभी भी
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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