SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 425
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [६८] संघ की महिमा जीवन में जब अध्यात्म की साधना की जाती है तो एक अद्भुत ही ज्योति अन्तर में जागृत होती है । उस ज्योति के आलोक में आन्तरिक शक्तियां जगमगा उठती हैं । साधारण मानव जिस बात पर बाह्य दृष्टिकोण से विचार करता है, साधक आध्यात्मिक दृष्टि से उस पर विचार करता है । आध्यात्मिक मंच से किसी बात को कहने का रूप दूसरा ही होता है । व्यवहारवादी दृष्टि से अध्यात्मवादी दृष्टि सदा विलक्षण ही रही है । अध्यात्मवादी दृष्टि सदा विलक्षण रही है । अध्यात्मवादी का दृष्टिकोण व्यवहारवादी को अटपटा भले ही लगे मगर पारमार्थिक सत्य उसमें अवश्य निहित होता है। बाह्य दृष्टिकोण वाला घर की सजावट, शरीर के श्रृंगार और भोगोपभोग की सामग्री के अधिक से अधिक संचय पर ध्यान देता है और इसकी सफलता में अपने जीवन की सफलता समझता है, किन्तु आध्यात्मनिष्ठ साधक उन सब 'पर' पदार्थों को भार स्वरूप समझता है । सद्गुण ही उसके लिए परम आभूषण हैं और आत्मा को विकसित एक-एक शक्ति ही उसके लिए एक-एक चिन्तामणि रल है। ___ बहिरात्माओं को यह सब स्वप्न जगत् में विचरण करने जैसा प्रतीत होगा । भौतिक दृष्टि के कारण ये बातें उसे विश्वसनीय नहीं प्रतीत होती । मगर इससे क्या? नेत्रहीन व्यक्ति यदि रूप के अस्तित्व को नहीं देख पाता तो क्या यह कहा जा सकता है कि रूप है ही नहीं ? इसी प्रकार अवास्तविक दृष्टि में जो सत्य सामने नहीं आता उसे असत्य नहीं कहा जा सकता। भौतिकवादी दृष्टिकोण वाला आभूषण, सजावट की सामग्री, आमोद-प्रमोद के साधन आदि जुटाने के लिए महारंभ करने से भी नहीं हिचकेगा । उसका एक ही दृष्टिकोण रहेगा कि जिन्दगी को सुखमय बनाने के लिए किन-किन उपायों का अवलम्बन किया जाय ? अगर उसके लिए मनुष्य और मनुष्येतर प्राणियों की हत्या
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy