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________________ 398 आध्यात्मिक आलोक कर लिया जाये! ठोकर खाकर मुनि का भान जागृत हो गया था, अतएव गुरु सम्भूति विजय के चरणों में जाकर वे अतिचार की शुद्धि कर लेना चाहते थे। जैसे पैर में कांटा चुभ जाने पर मनुष्य को चैन नहीं पड़ता व वेदना का अनुभव करता है और शीघ्र से शीघ्र उसे निकाल डालना चाहता है, इसी प्रकार व्रत में अतिचार लग जाने पर सच्चा साधक तब तक चैन नहीं लेता जब तक अपने गुरु के समक्ष निवेदन कर प्रायश्चित न कर ले। वह अतिचार रूपी शल्य को प्रायश्चित द्वारा निकाल करके ही शान्ति पाता है। ऐसा करने वाला साधक ही निर्मल चरित्र का परिपालन कर सकता है। गुणवान् और संस्कार सम्पन्न व्यक्ति ही निष्कपट भाव से अपनी आलोचना कर सकता है। जिसके मन में संयमी होने का प्रदर्शन करने की भावना नहीं है वरन् जो आत्मा के उत्थान के लिये संयम का पालन करता है, वह संयम में आयी हुई मलीनता को क्षण भर भी सहन नहीं करेगा। मुनि ने गुरु के चरणों में पहुंच कर निवेदन किया-"भगवन् ! आपकी इच्छा की अवहेलना करके मैंने अपना ही अनिष्ट किया। अनेक यातनाएं सही और अपनी आत्मा को मलिन किया है ।" इस प्रकार कह कर मुनि ने पूर्वोक्त घटना उन्हें सुनाई। उसमें से कुछ भी छिपाने का प्रयत्न नहीं किया। चिकित्सक के पास जाकर कोई रोगी यदि उससे बात छिपाता है, अपने दोष को साफ-साफ प्रकट नहीं करता तो अपना ही अनिष्ट करता है, इसी प्रकार जो साधक गुरु के निकट अपने दोष को ज्यों का त्यों नहीं प्रकाशित करता तो वह भी अपनी आत्मा का अनिष्ट करता है। उसकी आत्मा निर्मल नहीं हो पाती। उसे सच्चा साधक नहीं कहा जा सकता। सब वृत्तान्त सुनकर गुरुजी ने कहा-"वत्स ! तू शुद्ध है क्योंकि तूने अपना हृदय खोलकर सब बात स्पष्ट रूप से प्रकट कर दी है।" गुरु के इस कथन से शिष्य को आश्वासन मिला। उसने पुनः कहा-"आपने मुनिवर स्थूल भद्र को धन्य, धन्य, धन्य कहा था। मैंने इस कथन पर भ्रमवश शंका की थी। आपके कथन के मर्म को समझ नहीं सका था। अपने इस अनुचित कृत्य के लिये मैं क्षमाप्रार्थी हूं।" ___ मुनि के अंतर से ध्वनि निकली-"वह महापुरुष वास्तव में धन्य है जो काम-राग को जीत लेता है।" राग को जीत कर जीवन को सफल बनाने से ही मनुष्य का यह लोक और परलोक कल्याणमय बनता है।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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