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________________ आध्यात्मिक आलोक 387 स्पष्ट समझ में आ जानी चाहिए । अब तक के कानूनों ने अनैतिकता और अप्रामाणिकता को रोकने के बदले उन्हें बढ़ावा ही दिया है और भविष्य में भी ऐसा ही होने की संभावना है। तो फिर अनैतिकता का अन्त किस प्रकार किया जाय ? क्या यह उचित होगा कि इस सम्बन्ध के सब कानून समाप्त कर दिये जाएं और लोगों को पूरी स्वतन्त्रता दे दी जाय कि वे जो चाहें, करें, सरकार उन्हें नहीं रोकेगी । मगर ऐसा करने की भी आवश्यकता नहीं और यह अभीष्ट भी नहीं हो सकता, आवश्यकता इस बात की है कि जनता के मानस में धर्म और नीति के प्रति आस्था उत्पन्न की जाया धर्म और नीति के प्रति जब आस्था उत्पन्न हो जाएगी, तब निश्चय ही लोगों के हृदय में परिवर्तन होगा और हृदय में परिवर्तन होने से अनैतिकता और अप्रामाणिकता का अधिकांश में अन्त आ सकेगा । जो शासन धर्मनिरपेक्ष नहीं, धर्मसापेक्ष होगा वही प्रजा के जीवन में निर्मल उदात्त और पवित्र भावनाएं जागृत कर सकेगा। सूखते हुए वृक्ष को हरा-भरा रखने के लिए जैसे पत्तों पर पानी छिड़कना असफल प्रयास है, उसी प्रकार प्रजा में बढ़ती हुई अप्रामाणिकता को रोकने के लिए कानूनों का निर्माण करना भी निरर्थक है । वृक्ष को हरा-भरा रखने के लिए उसकी जड़ों में पानी सींचने की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार जन-साधारण के जीवन को शुद्ध और नीतिमय बनाये रखने के लिए उसमें धर्मभाव जागृत करना उपयोगी है । धर्मभाव से जीवन में जो परिवर्तन होता है वह स्थायी और ठोस होता है । दण्ड के भय में यह सामर्थ्य नहीं है। इसी कारण भगवान महावीर ने दण्डविधान का नहीं, प्रेम का, धर्म का मार्ग बतलाया है। उन्होंने मनुष्य के हृदय को परिवर्तित कर देने पर जोर दिया है । विचार को सम्यक् बना देने अर्थात् सही दिशा देने की आवश्यकता दर्शायी है । विचार की शुद्धि होने पर आचार अपने आप ही शुद्ध हो जाता है । धर्मशास्त्र का राज्य मन पर और कानून का राज्य तन पर होता है। गांधीजी ने अपने जीवनकाल में शराबबन्दी पर बहुत जोर दिया था। मगर वर्तमान शासन व्यापक रूप में मद्यनिषेध करने में हिचक रहा है। किसी-किसी प्रान्त में मद्यनिषेध का कानून बना भी तो पूरी तरह सफल नहीं हो सका । कानून के साथ जनता में धर्मभावना उत्पन्न किये बिना सफलता प्राप्त होना शायद ही संभव हो सके। महुआ, खजूर, चावल, ताड़ी, गुड़ आदि चीजों को मद्य बनाने के लिए सड़ाया जाता है । जीवजन्तुओं की उत्पत्ति होने पर ही उसमें सड़ाद पैदा होती है।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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