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________________ 26 आध्यात्मिक आलोक ___ संतों की वाणी में श्रद्धा और विश्वास के जागृत होने पर भी यदि रुचि जागृत नहीं हुई तो भोग को त्याज्य मानकर भी मानव उससे विरत नहीं हो सकेगा और बिना भोग-विरति के साधना में रति प्राप्त नहीं होगी । मानव को यह निश्चय कर लेना चाहिए कि भोग मात्र जीवन निभाने को है-जीवन बनाने की कला तो मुक्ति मार्ग में ही है। - आप देखते ही हैं कि मनुष्य अन्न के बिना भले ही निर्वाह करले किन्तु हवा का कभी परित्याग नहीं कर सकता, अथवा परित्याग करने से जी नहीं सकता। ऐसे ही हवा की तरह धर्म जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक खुराक है 1. इसी के द्वारा मनुष्य मुक्ति रूप साध्य को प्राप्त कर सकता है जो कि मानव-जीवन का चरम एवं परम ध्येय है। जीवन में अहिंसा, क्षमा, सत्य, अपरिग्रह आदि सद्गुण अपनाने से ही सच्ची आत्म-शान्ति मिलती है और जीवन सफल बनता है।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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