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________________ आध्यात्मिक आलोक 319 केवल निरपराध जीवों की संकल्पी हिंसा का ही त्याग आवश्यक बतलाया है । इससे अधिक त्याग करने वाला अधिक लाभ का भागी होता है किन्तु देशविरति अंगीकार करने के लिए इतना त्याग तो आवश्यक है । इसी प्रकार अन्यान्य व्रतों में भी गृहस्थ को छूट दी गई है। - गृहस्थ ने जिस सीमा तक जो व्रत अंगीकार किया है, उसका पालन कष्टों और विघ्न-बाधाओं का सामना करके भी वह करता है | व्रत के मार्ग में आने वाली सभी कठिनाइयों को वह दृढ़तापूर्वक सहन करता है । जिन सीमाओं तक उसने मनोवृत्ति को वश में करने का व्रत लिया है, उसका वह पालन करेगा । यही नहीं, सम्पूर्ण रूप से विरति का पालन करना उसका लक्ष्य होगा और वह उस लक्ष्य की ओर बढ़ने का निरन्तर प्रयास करेगा । यह बात दूसरी है कि वह उस ओर बढ़ पाता है या नहीं और यदि बढ़ पाता है तो कितना? आनन्द श्रावक के चरित्र में श्रावक जीवन की एक अच्छी झांकी हमें मिलती है । उसने भोगोपभोग के साधनों की जो मर्यादा की थी, शास्त्र में उसका दिग्दर्शन (विवरण) मिलता है । भोगोपभोग के नियमन सम्बन्धी व्रत के दो विभाग हैं-भोजन सम्बन्धी और कर्म सम्बन्धी । कर्म सम्बन्धी भोगोपभोग में जो मर्यादा की जाती है, उसे भगवान महावीर ने समझा दिया है । उस पर आप ध्यान देगे तो विदित हो जाएगा कि श्रावक का शास्त्रीय जीवन वैसा नहीं जैसा आज दिखाई देता है, वरन् वह निराले ही ढंग का होता है । गृहस्थ भले ही श्रावक जीवन में रहता है, मगर उसका लक्ष्य 'मुनिजीवन' होता है । मुनिजीवन एक प्रकार से पराश्रित है, क्योंकि मुनि गृहस्थ के यहां से निर्वाह योग्य वस्तु पाता है । गृहस्थ जिन वस्तुओं का उपयोग करता होगा, वही वस्तुएं साधु को प्राप्त हो सकेंगी, उन्हें ही वह दे सकेगा | सोने चांदी के पात्रों में खाने वाला यदि काष्ठपात्र न रखता हो तो अवसर आने पर काष्ठपात्र मुनि को कैसे दे सकेगा ? हां तो यहां पहले भोजन सम्बन्धी भोगोपभोग परिमाण व्रत के पाँच अतिचार बताये हैं, जो इस प्रकार हैं (१) सचित्ताहार- व्रत में त्यागी हुई सचित्त वस्तुओं का असावधानी या भ्रम के कारण सेवन करना सचित्ताहार नामक अतिचार है । इस अतिचार से बचने के लिए श्रावक को सदा सावधान रहकर त्यागी हुई सचित्त वस्तुओं के सेवन से बचना चाहिए। (२) सचित्त से सम्बद्ध वस्तु का आहार-यदि कोई वस्तु अचित्त होते हुए भी सचित्त से प्रतिबद्ध है तो वह आहार के योग्य नहीं है, जैसे बबूल या किसी
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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