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________________ 17 आध्यात्मिक आलोक साध्य बनाकर मोहरूपी रोग से ग्रस्त हो जाते हैं। कमजोरी की अवस्था में, बीमार मनुष्य जैसे छड़ी का सहारा लेता है और सबलता के आते ही उसे छोड़ देता है, • उसी प्रकार ज्ञानवान परिग्रह को दुर्बल का सहारा मानता और समय के आते ही छोड़ देता है। जैसे केंचुली सांप को अन्धा बना देती है वैसे परिग्रह की अधिकता भी मनुष्य के ज्ञान पर पर्दा डाल देती है। केंचुली से बँधा सांप जैसे परेशान होकर पीड़ा सहकर भी झिल्ली को निकाल फेंकता है वैसे ही मनुष्य को भी परिग्रह रूपी केंचुली को प्रयत्न करके निकाल फेंकना चाहिये । क्योंकि यह ज्ञानचक्षु को बन्द कर देने का कारण है। . __ परिग्रह का दूसरा नाम 'दौलत' है जिसका अर्थ है दो-लत अर्थात् दो बुरी आदत। इन दो लतों में पहली लत-हित की बात न सुनना, दूसरी लत-गुणी माननीय, नेक सलाहकार और वन्दनीय व्यक्तियों को न देखना, न मानना । समष्टि रूप से यह कहा जा सकता है, कि परिग्रह ज्ञानचक्षु पर पर्दा डाल देता है- जिसके परिणामस्वरूप मनुष्य अपना सही मार्ग निर्धारित नहीं कर पाता । महामुनि शय्यंभव भट्ट ने यशोभद्र के परिग्रह का पर्दा अपनी उपदेश-धारा द्वारा हटा दिया और उसे अलौकिक आत्म-सुख दिलाया। शय्यंभव महाराज तो निमित ही बने किन्तु अपनी साधना के द्वारा यशोभद्र अमर बन गये । हर मानव में ऐसी शक्ति छिपी है जो उसे ऊपर उठा सकती है। जगत का प्रत्येक नर नारायण बनने का हकदार है और चाहे तो बन सकता है। किन्तु आवश्यकता है, पुरुषार्थपूर्वक साधना के पथ पर चलने की। जो साधनामार्ग के कांटों, रोड़ों और आपत्तियों की परवाह नहीं करता, मंजिल उसके स्वागत के लिये ‘पलक पांवड़े बिछाये तैयार खड़ी रहती है। जो सांसारिक क्षण-भंगुर प्रलोभनों के चक्कर में नहीं पड़ता और साहस से साधना के मार्ग में चलने के लिये जुट जाता है, उसका इहलोक और परलोक दोनों सुधर जाते हैं। २०११-६२
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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