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________________ आध्यात्मिक आलोक 231 विकार हेतौ सति विक्रयन्ते येषां न चेतांसि ते एव धीरा । अर्थात् विकार के कारण मिलने पर भी जिनके चित्त में विकार उत्पन्न नहीं हों वे ही धीर हैं। गृहस्थ वर्ग में हजारों ऐसे नमूने हो गये हैं जिन्होंने जीवन को निष्पाप बनाये रखा तथा निकाचित कर्मबन्ध नहीं किया। पुरोहित सोमदत्त का लड़का काशी से पढ़कर जब घर आया तो उसके आगमन के उपलक्ष्य में सारे नगर में खुशी मनाई जाने लगी। नगर के प्रमुख जनों ने सम्मान पूर्वक उसका नगर प्रवेश कराया। सबके मुँह से एक ही बात थी कि बाप से बेटा सवाया निकला। पुरोहित पुत्र भी यथा योग्य सबका सत्कार करके घर आया और माता के चरणों में सिर झुका कर उसने प्रणाम किया, पर सामायिक में होने से माँ वैसे ही उपेक्षित बैठी रही। माँ के इस उपेक्षित स्वागत से पुत्र को सन्तोष नहीं हुआ और बोला- माताजी बारह वर्ष से मैं विद्या पढ़ कर घर आया हूँ जिसकी सारे नगर में प्रसन्नता है पर आपके मुख पर प्रसन्नता दिखाई नहीं देती। क्या कारण है ? क्या मेरी इस सफलता से आपको सन्तोष नहीं है ? यह सुनकर माता बोली बेटा ! सन्तोष क्या बताऊं? अभी तो तूने १२ वर्षों में केवल पेट भरने की विद्या सीखी है, आत्मोन्नति के ज्ञान-अध्यात्म विद्या का तो उपार्जन किया ही नहीं। फिर भला मैं सन्तुष्ट कैसे होऊँ ? अपना एवं अपने परिवार का भरण-पोषण तो जंगल के पशु-पक्षी भी कर लेते हैं और इसके लिये अपेक्षित श्रम से कभी जी नहीं चुराते। एम. ए, बी. ए, वकील, बैरिस्टर और आचार्य शास्त्री भी भरण-पोषण मात्र ही करते हैं। इस प्रकार जीवन निभाने की कला सीख लेने से मनुष्य को सन्तोष नहीं मान लेना चाहिये। ___ माता के स्पष्ट और सुधरे वचन ने पुत्र के हृदय को उद्वेलित कर दिया। मातृ भक्त होने के कारण उसने ऐसी शिक्षा लेने का संकल्प लिया, जिससे माता को सन्तोष हो। उसने माता से पूछा तो आदेश मिला कि अमुक आचार्य के पास आगमों का ज्ञान प्राप्त करने के लिये जाओ | आगम का एवं पूर्वो के ज्ञान का अभ्यास करने के लिये वह उन जैनाचार्य के पास गया और ज्ञान प्राप्ति के लिए उनका शिष्य हो गया। आज की देवियां यदि इस प्रकार अपने पुत्र को आदर्शोन्मुख बनायें, तो देश की काया पलट हो सकती है। विचार बल की छाप आचार पर पड़ती है। जिसका विचार बल सूना रहेगा, उसमें आचार बल की शुन्यता स्वयंसिद्ध है। स्थूलभद्र रूपकोषा के यहाँ काम जीतने के लिये पहुंचे हैं।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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