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________________ 214 आध्यात्मिक आलोक - का लाभ नहीं उठाया जा सकता है। हम देखते हैं, बालक अध्यापक की बात पर विश्वास करता है और उसके मुकाबले में मां-बाप या अन्य स्वजनों पर विश्वास नहीं करता, चाहे उनकी बात सही हो । अध्यापक की बात से ही वह अपने अभिभावक की बातों पर विश्वास करता है और गुरु वचन में श्रद्धा रखने वाला छात्र निश्चय ही सफल होता है । ऐसे ही विज्ञान, नीति, अर्थशास्त्र या धर्म आदि कोई भी विषय हो, सब में गुरु की बातों पर विश्वास लेकर चलने में ही कल्याण है। भगवान महावीर के वचनों पर विश्वास हो, तो कोई कितना भी बहकावे वह श्रद्धा में विचलित नहीं होगा । निश्शंकता गुण को दर्शन का पहला आचार बतलाया गया है । व्यवहार मार्ग में भी जटिलता रहती है फिर तत्व मार्ग तो और अधिक जटिल है। इस मार्ग में कई बातें इन्द्रियगम्य नहीं हैं। यदि श्रद्धा न हो, तो साधक इस मार्ग में आगे नहीं बढ़ सकेगा। हीरे-जवाहरात को तौलने और गुड़शक्कर को तौलने के बाट अलग-अलग रखे जाते हैं। हीरे-जवाहरात में बारीक तौल रहता है। यहां तक कि रत्ती के १/१०० वें भाग का भी तोल होता है । परन्तु गुड़ शक्कर में इतनी बारीकी नहीं होती । सूक्ष्म वस्तुओं को देखने के लिए सूक्ष्म दृष्टि चाहिए किन्तु स्थूल वस्तुओं के लिए उसकी आवश्यकता नहीं होती । एक्सरे की आंख से शरीर के भीतरी भागों को देख लिया जाता है । ऐसे ही अध्यात्म क्षेत्र का निर्णय प्राप्त करने के लिये चर्म चक्षु से नहीं वरन् मानस चक्षु से देखना पड़ता है। 'शंका के बाद 'कांक्षा' रूपी अतिचार का त्याग करना होगा । भौतिक . वस्तुओं से श्रद्धा का माप करने वाला विश्वास पर नहीं टिकेगा । क्योंकि कभी-कभी सत्य मार्ग पर चलने वाला दुःखी प्रतीत होता है और असत्य मार्ग पर चलने वाल पूर्णतः सखी दिखाई देता है । व्यवहार में ऐसा दिखाई पड़ने से साधारण मनः स्थिति वाला भले ही अपने को सत्य मार्ग से मोड़ ले, पर उच्च हृदय वाला सत्य पर दृढ़ रहेगा। बदली में चांद के छिप जाने भर से चांद विषयक उसकी प्रतीति और प्रीति कुछ कम नहीं पड़ती। व्यवहार जगत में दूसरे का माथा मूंड लेने वाला भले ही चालाक कहलावे, परन्तु यह कला, कला नहीं, वरन् भीतर-बाहर दोनों ओर से काला ही है। इसके आश्रय से जीवन कभी ऊपर नहीं उठ सकता और न लोक मानस में विश्वास ही प्राप्त हो सकता है । पुण्य पाप को समझने वाला व्यक्ति जालसाज लोगों को सुखी देखकर भी दोलायमान या चंचल चित्त नहीं होगा, क्योंकि मनुष्य सुख-दुःख कई जन्मों के कर्म के कारण पाता है । एक श्रीमन्त या जमींदार का लड़का शराबी, जुआरी
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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