SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 210 आध्यात्मिक आलोक लीक लीक गाड़ी चले, लोकहि चले कपूत । लीक छोड़ तीनों चले, शायर, सिंह, सपूत ।। पुरानी लीक पर चलना कायर एवं कपूत का काम है । रेलगाड़ी, बैलगाड़ी आदि बंधी बंधाई लीक पर चलती हैं और कपूत भी लीक पर चलता है। कवि, सिंह, सपूत तीनों लीक छोड़कर चलते हैं । तर्क-दलील करने वाला उसका भला और बुरा दोनों उपयोग ले सकता है । तर्कवान अपनी भावना के अनुसार तर्क करता है। गाड़ी के नीचे कुत्ता पूंछ उठाकर चलता है-वह सोचता है कि गाड़ी मेरे बल पर चल रही है । वह अज्ञानी यह नहीं जानता कि यह गाड़ी बैल के सहारे चल रही है। इसी प्रकार चक्रवर्ती ने देवों को कहा-जहाज तुम्हारे सहारे नहीं चलता, तुमको अपनी शक्ति का गर्व हो तो चले जाओ । ऐसा कहने पर देवों ने उसका जलयान समुद्र पर छोड़ दिया । नवकार मन्त्र के प्रभाव से जहाज चलता रहा । चक्रवर्ती ने अहंकार से उसे भी मिटा दिया । फिर क्या था, समुद्र में भयंकर तूफान आया और जलयान के साथ चक्रवर्ती भी समुद्र में डूब कर मर गया । देव उसकी सेवा में थे फिर भी वे उसे बचा नहीं सके । उसके पुण्य बल समाप्त हुए और पाप बल बढ़ गए, अतएव उसकी मृत्यु हो गई। श्रद्धालु श्रावक दुःख आने पर भी श्रद्धा से दोलायमान नहीं होता । श्रद्धा को शिथिल करने वाले पांच बाधक तत्व हैं । साधना मार्ग में चलने वालों को इनसे सदा सावधान रहना चाहिए । ज्ञान और आत्म गुण की साधना में जिसने मन को निश्शंक बना लिया, वह दुःख में भी विचलित नहीं होता । जो भौतिक और रमणीक पदार्थों से मन नहीं मोड़ सकता, वही दुख आने पर विचलित होता है । स्थूलभद्र के चरणों पर पाटलिपुत्र का महामन्त्रित्व का पद लोट रहा है परन्तु वह उसे ठोकर मारता है । वह कहता है, मुझे अब समझ आ गई और मेरा भ्रम दूर हो गया, अतएव मैं सांसारिकता में लिप्त नहीं होऊंगा । बाल्यावस्था में बालक मिट्टी का घरौंदा बनाता है, किन्तु बड़ा होने पर वह ऐसा नहीं करता । बचपन में मां-बाप तो अपने बालक को कपड़े खराब करने के कारण डांटते हैं । यह समझ का परिणाम है । इस प्रकार संसारी मनुष्य भी नादान बालक की तरह. कोठी बंगले आदि के बड़े बड़े घरौंदै बनाते रहता है । ज्ञानीजन के लिए संसार के समस्त आरम्भ घरौदे तुल्य हैं, परन्तु धन संचय करने वाले भोगी जीव बालक के समान इसे नहीं जानते बल्कि इनको ही अपना वास्तविक घर मानते हैं। स्थूलभद्र को सभी परिजनों, हितैषियों एवं लाछलदे मां ने भी बहुत कुछ । समझाया परन्तु वह अपनी बातों में दृढ़ रहा । फलतः श्रीयकं को महामन्त्री पद का
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy