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________________ 200 आध्यात्मिक आलोक न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति । हविषा कृष्ण वर्मेव, भूय एवामिव वर्धते ।। आग में घी और पुआल डालने से वह बढ़ती है, शान्त नहीं होती । ऐसे ही काम लोभ की अग्नि भी भोग एवं कामना से शान्त नहीं होती बल्कि अधिक प्रज्वलित होती है। मनुष्य यदि शान्ति चाहता है तो उसे कामना की आग को सीमा से अधिक नहीं बढ़ने देना चाहिए । धर्म-रूपी प्रसाद के दो विशाल स्तम्भ हैं-१. संघ और दूसरा श्रुत। यदि इन दो का सहारा नहीं रहेगा, तो धर्म नहीं टिकेगा और धर्म अगर नहीं टिका, तो निश्चय ही यह धरा भी नहीं टिकेगी। किसी ने ठीक ही कहा "हैं उसे कहते धरम, जिस पर टिकी है यह धरा ।" साधु-साध्वी एवं श्रुत का सहारा भोजन और हवा की तरह समाज के लिए उपादेय है । भोजन से भी अधिक महत्व हवा का है, जिसके बिना जीवन धारण असंभव है। भोजन और हवा इन दोनों में प्राण रक्षण की शक्ति है । यह तो शरीर धारण सम्बन्धी द्रव्य जीवन की बात हुई । वैसे ज्ञान, दर्शन, चारित्र का रक्षण यह भाव जीवन की बात है । सत्संग भोजन की खुराक के समान है । इसके बाद श्रुत ज्ञान का महत्व है । श्रुताराधन वायु सेवन की तरह है। दुषित वायु के सेवन से काम नहीं चलेगा । ऑक्सीजन वायु से मनुष्य दीर्घायु बनता है । और दुषित गैस के सेवन से आयु क्षीण होती है । कल कारखानों में काम करने वाले मजदूर इसी दूषित वायु सेवन के कारण क्षीण काय और अल्प आयु वाले होते हैं । आध्यात्मिक जगत में जड़वाद नास्तिकवाद और भौतिकवाद की दूषित हवा है । वहां यदि श्रुत ज्ञान द्वारा शुद्ध हवा नहीं मिली, तो आध्यात्मिक जीवन आगे नहीं बढ़ सकेगा । अतएव श्रुत ज्ञान को मजबूत बनाना चाहिए । मन का उत्साह और श्रद्धा, श्रुत के अभाव में पानी के बुबुदे के समान विलीन हो जायेंगे । यदि कुछ भाई इस दशा में प्रेरक बनें, तो आध्यात्मिक जीवन सुधर सकता है । जीवन बनाने के लिए मन में आई हुई शुभ लहरों उमंगों को स्थायी रूप देने का प्रयत्न किया जाय, तो विशेष लाभ हो सकता है । इसके लिए धर्म के द्वीप को सुरक्षित रखने के लिए इस प्रकार की प्रेरणा सतत होती रहे, यह आवश्यक है। प्रार्थना तथा स्वाध्याय का रूप चलता रहे, तो उत्तम है । हर एक संघ को दीपक बनकर दूसरों को ज्ञान की ज्योति देने का काम करना चाहिए। यदि दीपक में तेल और बत्ती है किन्तु लौ बुझ गई है तो जलता हुआ दूसरा दीपक उसे जला सकता है । जीवन में विचार .एवं प्रेम का तेल और बुद्धि की बात है परन्तु ज्ञान की रोशनी जल नहीं रही है ।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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