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________________ 191 आध्यात्मिक आलोक मानव मन का उलट चक्र सब गड़बड़ा देता है । वह लड़ाई करने, . अपशब्द बोलने एवं क्रोध करने में प्रमाद नहीं करता और उपदेश सुनकर त्याग, विराग का रंग आ जाय, तो प्रमाद में समय टालता है । यही उलटापन है, जिससे मनुष्य को बचना चाहिए । धार्मिक राजकीय व सामाजिक कार्यों में उग्रता के समय यदि कुछ समय टालकर जवाब दिया जाय और बीच में भगवान का भजन कर लिया जाय, तो अच्छा होगा । उत्तेजना के समय किये जाने वाले काम में प्रमाद करना अच्छा है, किन्तु जीवन को उन्नत बनाने वौल कामों में प्रमाद से दूर रहना अत्यन्त आवश्यक है । ऐसे प्रमाद में पड़ने वाला स्वयं अपने को तथा दूसरों को भटका देता है । मनुष्य प्रमत्त बनकर मार्ग भूल जाता है और धोखा खाता है, किन्तु संयम वाला धोखा नहीं खाता | ज्ञान पाकर बड़े बड़े चक्रवर्तियों ने राज्य सिंहासन और वैभव छोड़ दिए, क्योंकि उन्हें हिताहित का बोध हो गया था । शकटार प्रमाद के कारण ही विनाश के मुख में चला गया । फिर भी अन्त समय में प्रमाद छोड़कर उसने परिवार को बचा लिया, अन्यथा प्रमाद से सपरिवार नष्ट हो जाता । महाराज नन्द अपना पाप धोने के लिए या कृतज्ञतावश श्रीयक को मन्त्री बनाना चाहते थे पर श्रीयक ने अपने बड़े भाई को आमन्त्रित करने को कहा, जैसा कि कहा जा चुका है । उधर स्थूलभद्र रूपकोषा के घर उन्मत्त रूप से जीवन बिता रहा था । वह शिक्षा लेते-लेते विलास में डूब गया था । स्थूलभद्र और रूपकोषा का जीवन ऐसा बन गया था, जैसे काया और छाया । दोनों एक-दूसरे को छोड़ नहीं सकते थे । राजा नन्द ने स्थूलभद्र के लिए मंत्री पद देना स्वीकार किया । जब राज कर्मचारी रूपकोषा के घर स्थूलभद्र को बुलाने गये, तब रूप कोषा ने भी एक प्रजा के नाते, राजा के बुलाने पर स्थूलभद्र को जाने का परामर्श दिया और शीघ्र लौट आने को निवेदन किया । रूपकोषा ने चलते समय मधुर शब्दों में कहा कि बारह वर्ष का स्नेह न भूल जाइएगा। स्थूलभद्र भी स्वेच्छा से जाना नहीं चाहता था, किन्तु वह राजाज्ञा एवं रूपकोषा के परामर्श को नहीं टाल सका, अतः राज दरबार में उपस्थित हुआ । स्थूलभद्र को देखते ही सभासद प्रसन्न हो गए । राजा नन्द ने भी कहा कि महामन्त्री के असामयिक अवसान के दुःख को दूर करो और मन्त्री का पद ग्रहण कर उसे खूबी के साथ निभाओ । कभी-कभी साधारण बात मन को जागृत कर देती है । स्थूलभद्र सोचने लगा कि जिस कुर्सी ने पिता के प्राण लिए, उस अनर्थ मुलक कुर्सी को मैं ग्रहण करूं
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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