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________________ 186 आध्यात्मिक आलोक ___ धार्मिक वात्सल्य में बदले की भावना नहीं रहती, किन्तु कौटुम्बिक वात्सल्य में लेन-देन एवं आदान-प्रदान का भाव रहता है । धार्मिक वत्सलता में जो रांग का अणु रहता है, वह शुभ है, अतएव आत्मा को दुःख सागर में डुबोने वाला नहीं होकर, यह धर्म के अभिमुख कराने वाला होता है । धार्मिक वात्सल्य की मनोभूमिका में आत्म-सुधार की भावना रहती है । सीहा अनगार महावीर स्वामी के देहोत्सर्ग की आशंका से सिसक-सिसक कर रोने लगा। उस समय उसका वह आर्तध्यान शुभ था। उसमें गुरु पर धर्म, राग और जिन-शासन की लघुता न हो, यह शुभ भावना थी। धार्मिक वात्सल्य वृद्धि शुभ है, इसको सम्यग्दर्शन का आचार माना गया है, क्योंकि वात्सल्य में सद्गुणों का आदर होने से नये साधकों को प्रेरणा मिलती है। समुद्र में विशाल सम्पदा है, वह रत्न-राशि को पेट में दावे रहता है और सीपी घोंघों आदि को बाहर फेंकता है । इस पर किसी कवि ने उसको अविवेकी बतलाया है । वास्तव में यह ललकार समाज को है, जो गुणियों को भीतर दबाकर रखे और वाचालों को बाहर लावे | जो समाज गुणियों का आदर और वात्सल्य करना नहीं जानता, वह प्रशंसनीय नहीं कहलाता । ऐसी बेकद्री के लिए कवि कहता है "गुण ओगुण जिण गांव, सुणे न कोई सांभले । उण नगरी बिच रहणो नहीं भलो रे राजिया ।।" वास्तव में कवियों ने समुद्र को इसीलिए अविवेकी कहा है कि वह रल और सीप को बराबर नहीं देखता है । रत्नों को नीचे दाबे रखकर सीपियों को ऊपर लाता है। इसी तरह, जहां विद्वानों को दबाकर रखा जाय और वाचालों को ऊपर लाया जाय, यह अविवेक है। ___आज अनन्त चतुर्दशी का मंगलमय पर्व है । सहस्रों वर्षों से यह पर्व सन्देश देता आ रहा है कि हे मानव ! तू अनन्त आनन्द का संचय कर सकता है, धर्म का धागा बांध कर अपना कल्याण कर सकता है । आज से नव ऋतु का प्रारम्भ हो रहा है, अतः जीवन का दौर भी नवीन होना चाहिए । समय जड़ है । परिवर्तनशील होने से वह शीघ्र बदलता रहता है। उसमें एक-दूसरे के निमित्त से जो भी लेना चाहे, ले सकता है । ज्ञान-दर्शन और चारित्र की वृद्धि भी तभी हो सकती है, जब मनुष्य समय और पर्व समागम का मूल्य करे । समय के चले जाने पर कुछ नहीं होता । कहा भी है-“समय गए पुनि का पछताए ।" द्रव्य निद्रा तो छुड़ाई जा सकती है, परन्तु भाव निद्रा सहज में नहीं छूटती। द्रव्य निद्रा अचेत अवस्था में रहती है, पर भाव निद्रा में प्राणी हलचल में होता है ।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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