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________________ 180 आध्यात्मिक आलोक . लोगों ने शकटार को महामन्त्री के रूप में भी देखा और आज उनकी यह दशा भी देखी । पुत्र भी ऐसा काम कर सकता है, इस घटना से लोग आश्चर्य चकित थे । यों तो राजा का हृदय कठोर होता है । वह हजारों की लाशों पर चलकर भी कड़ा दण्ड देने में दुखानुभव नहीं करता, परन्तु इस समय शकटार की हत्या से नन्द की स्थिति बदल गई। वे चकित हो गए और सोचने लगे कि बात क्या है? राज सभा के लोग चिन्तित हो गए । राजा ने श्रीयक से महामन्त्री के वध का कारण पूछा । श्रीयक ने रुद्ध कण्ठ से कहा-"स्वामिन् ! यह सेवक का धर्म है कि मालिक जिसे पसन्द नहीं करे, सेवक के लिए वह प्यारी से प्यारी वस्तु भी छोड़ने योग्य होती है । आप के मन से जो उतर गया वह बाप होते हुए भी मेरा दुश्मन है । महामन्त्री को देखकर आपने मुँह मोड़ लिया, इसलिए मैंने उचित समझा कि ऐसे व्यक्ति का जीना व्यर्थ है और यही सोच कर स्वामिभक्ति के नाते मैंने ऐसे व्यक्ति का वध कर दिया ।" श्रीयक की बातों से राजा के मन में पूर्ण विश्वास की स्थिति बन गई। यह लौकिक स्वामिभक्ति का हमारे सामने उदाहरण है । यदि इसी प्रकार भगवान् के प्रति लोगों की स्वामिभक्ति हो जाय, तो क्यों न मनुष्य प्यारी से प्यारी भौतिक वस्तु को छोड़ सकेगा | महावीर स्वामी ने आरम्भ परिग्रह और विषय कषाय से मुँह मोड़ लेने का उपदेश दिया । नजर मोड़कर राजा नन्द ने शकटार के लिए कुछ नहीं कहा था, मगर मुँह मोड़ लेने भर से शकटार ने जीवन का मोह छोड़ दिया। यद्यपि शकटार के जीवन त्याग के पीछे. परिवार एवं वंश की भलाई की भावना थी फिर भी उसमें मोह का भाव है । यह मात्र लोक दृष्टि से प्रशंसनीय है। किन्तु जो मानव त्रिशलानन्दन वीर को प्रसन्न करने के लिए जगबन्धन से मुक्ति पाना चाहते हैं, उन्हें विषय कषाय से मुख मोड़ना पड़ेगा । विषय त्याग के संग यदि साधना की रफ्तार धीमी भी रही तो जीवन निर्मल हो सकता है तथा आत्मा का रूप शुद्ध हो सकता है। देश की भौतिक रक्षा के लिए जैसे सैनिकों को भरती करना पड़ता है उसी प्रकार देश की नैतिकता व आध्यात्मिक संरक्षण के लिए साधुओं और स्वाध्यायियों की भी आवश्यकता है। देशवासियों के मन में जब तक धर्म के प्रति प्रेम नहीं जागेगा तब तक किसी प्रकार का सुधार स्थायी नहीं हो सकता। इसके लिए त्यागियों, विद्वानों और गुणवानों को अपेक्षित सहयोग देना पड़ेगा और इनकी संख्या तभी बढ़ सकती है,
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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