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________________ 170 आध्यात्मिक आलोक ___अर्थात् कुल की रक्षा के लिए एक का त्याग कर दो, ग्राम के लिये कुल का, देश के लिए ग्राम का और आत्मा के लिए सबका त्याग कर दो, पर आत्मा का अहित न होने दो । श्रीयक की चिन्ता यह थी कि किसी तरह राजा के कोप से पिता बच जायं । पुत्र के जीतेजी किसी दूसरे के द्वारा पिता पर आने वाली आंच उसके लिए खुली चुनौती है. जिसका सामना प्राण देकर भी पुत्र को करना ही चाहिए । अतः महामंत्री की नीतिपूर्ण उक्ति से पुत्र का जलता-भुनता मन सन्तुष्ट नहीं हुआ, पर कुछ शान्त जरूर हो गया । शकटार ने कहाः- "पुत्र ! मेरे कारण कुल का नाश न हो। इसका उपाय यह है कि दरबार में जब राजा मुझे उपस्थित देखकर अपना मुख मोड़ले, उस समय तुम अपना खड्गमेरी गर्दन पर चला देना । जब राजा पूछे तो यह उत्तर देना कि आप राष्ट्र के पिता हैं और ये मेरे पिता हैं, अतएव राष्ट्र के पिता की आज्ञा . सर्वोपरि है। आपके कोप भाजन की सजा मृत्यु से कम क्या हो सकती है इसलिए मैंने इन पर खड्ग का प्रहार किया है। इस तरह नीति तथा कुटुम्ब दोनों का रक्षण होगा और न्याय की मांग किए बिना ही कार्य सिद्ध हो जायेगा । मेरे मान को बचाने की चेष्टा से कुटुम्ब की हानि होगी । जो परिवार नीति का रक्षण करेगा, वह सत्य और सदाचार की प्रीति के कारण कुल का वातावरण शुद्ध रख सकेगा।" यदि कोई व्यक्ति यह सोचे कि भले ही पुत्र वेश्यागामी या शराबी क्यों न हो, आखिर वह मेरा लड़का है । कैसे उसका तिरस्कार या अपमान कर उसे घर से बाहर जाने दूं ? तो उस एक के चलते सारा घर गड़बड़ा जाएगा, अतः घर के सुधार का यही एक प्रशस्त मार्ग है कि या तो उस लड़के को सुधारो या उससे किनारा करो । यदि कुमार्गगामी पुत्र को सुधारा न जाय और किनारा भी नहीं किया जाय तो घर भर का अहित हुए बिना नहीं रहेगा । राजनीति और धर्मनीति दोनों में त्याग का महत्व है । एक में यह त्याग केवल अपने स्वार्थ साधन मान, मर्यादा, पद और नामवरी आदि के लिए है, पार्टी या राजनीति को सबल बनाने के लिए भी त्याग किया जाता है किन्तु धर्मनीति में त्याग परमार्थ के लिए किया जाता है । बड़े-बड़े राजे महाराजे जिनके वैभव का कोई पारावार नहीं था, धर्माचरण हेतु भोग-विलास से पराङ्मुख ही नहीं हुए वरन् अनेकों कष्ट भी सहे हैं । पर धर्माचरण पर डटे रहे जिसका अन्तिम परिणाम अत्यन्त सुखद रहा। मनुष्य अर्थनीति में जितना समय लगाता है, यदि उसका आधा समय भी धर्मनीति में लगावे, तो उसका उद्धार हो सकता है । आज का मानव व्रत नियम की
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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