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________________ आध्यात्मिक आलोक ____ गांधीजी के जीवन में साधना, व्रत, भक्ति, सादगी और सुचरित्र आदि का समावेश उनकी माताजी के संस्कार का ही परिणाम कहा जा सकता है । पाश्चात्य प्रभाव से प्रभावित व्यक्ति आध्यात्मिकता के विरोध में तर्क उपस्थित करते हैं, किन्तु वैसी तर्क-भावना बैरिस्टर गांधी के मन को प्रभावित नहीं कर सकी। कारण स्पष्ट है कि भारतीय संस्कृति में पली जननी का सुसंस्कार पाश्चात्य शिक्षा जन्य बुराइयों को दूर रखने में सर्वथा सफल रहा। यदि भोजन सात्विक और मन दृढ़ न हो तो कोई भी तरुण हर्गिज पाश्चात्य रमणियों से प्रभावित हुए बिना स्वदेश नहीं लौट सकता। - घर में माता-पिता का जैसा व्यवहार होता है, प्रेम या विरोध के जो वातावरण दृष्टिगोचर होते हैं सन्तान के मन पर उसका प्रभाव अवश्य पड़ता है, इसीलिये बच्चे को जैसा बनाना चाहते हैं, दम्पत्ति को स्वयं वैसा बनना होगा। यदि माता-पिता स्वयं विनयशील न होंगे तो बच्चे कैसे विनयशील होंगे ? यदि पिता स्वयं की बुढ़िया मां से ठीक व्यवहार नहीं करे तो उसके बच्चे बड़े होने पर मां-बाप से विनय का व्यवहार कैसे रखेंगे ? बहुत बार लोग शिकायत करते हैं कि महाराज! बच्चों में विनय नहीं रहा, ये लोग बड़ों की बात नहीं मानते । वास्तव में इसके लिये माता-पिता भी जिम्मेदार हैं। मांबाप शीलवान एवं विनम्न हैं तो उनके बच्चे भी वैसे ही बनेंगे। बचपन में डाला गया संस्कार अमिट होता है और यह दायित्व पूर्ण रूप से माता-पिता पर अवलम्बित रहता है। नीति भी कहती है “यनवे भाजने लग्नः संस्कारो नान्यथा भवेत् ।" शिक्षा का प्रभाव - जीवन-निर्माण में दूसरी छाप शिक्षा की भी पड़ती है। माता-पिता की वात्सल्यमयी गोद छोड़ने के बाद बच्चे शिक्षालय की शरण में जाते हैं और वहां जैसी शिक्षा प्राप्त होती है, उसके अनुकूल अपने आचरण का निर्माण करते हैं। मगर देखने से पता चलता है कि आज की शिक्षा जीवनोपयोगी होते हुए भी, व्यावहारिकता और आध्यात्मिकता से कोसों दूर है । आज के अध्यापक का जितना ध्यान, शरीर, कपड़े, नाखून, दांत आदि की बाह्य स्वच्छता की ओर जाता है, उतना उनकी चारित्रिक उन्नति की ओर नहीं जाता। बाह्य स्वास्थ्य जितना आवश्यक समझा जा रहा है, अतंरंग भी उतना ही आवश्यक समझा जाना चाहिये। अंतर में यदि सत्य-सदाचार और सुनीति का तेज नहीं है तो बाहरी चमक-दमक सब बेकार साबित होगी। सही दृष्टि से तो स्वस्थ मन और स्वस्थ तन एक दूसरे के पूरक व सहायक हैं। आज ग्रामीण बालक धूलि भरे बदन होते हुए भी नगर किशोरों से अधिक हष्ट-पुष्ट क्यों दीख पड़ते हैं ? मानना होगा कि इसका प्रमुख कारण उनका आहार-विहार व सदाचार ही
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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