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________________ 120 आध्यात्मिक आलोक निश्चय ही तिलमिला उठेगे और इस देश वालों को अपना भक्त हर्गिज स्वीकार नहीं करेंगे। ___ उनका शैशव गौ - वत्सपालन और गौचारण में कटा और यौवन में उन्होंने नीतियुक्त पौरुष का प्रदर्शन किया। युद्ध में वे सदा धर्मनीति का विचार रखते थे। उनकी युद्ध-प्रणाली में हिंसा में भी अहिंसा का लक्ष्य था। यही कारण था कि महाभारत का संघर्ष टालने के लिये उन्होंने कौरवों से पाण्डवों के लिये सिर्फ पांच गांव मागे और दुर्योधन के द्वारा सुई की नोंक बराबर भी जमीन नहीं देने पर भी पक्षपात का पल्ला नहीं पकड़ा । उन्होंने दुर्योधन के मांगने पर अपनी सेना उसे अर्पित की और अर्जुन की इच्छा के अनुकूल उसके सारथि बने । अन्तर में एक के प्रति गहरी प्रीति भले ही रही हो, परन्तु व्यवहार में उन्होंने अपने को उज्ज्वल बनाये रखा। आज श्रीकृष्ण सदृश विनयशीलता लोगों में नहीं रही। शिक्षा का स्वरूप ही दृषित हो गया है, लोगों में अहं भाव बढ़ गया है तथा माता-पिता की और से सन्तान को मिलने वाले सुसंस्कार में भी अतिशय कमी हो गई है । इन सब कारणों ने समष्टि रूप से जनमानस को विकृत कर दिया है। __ श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में जो कदाचार के आरोप लगाये जाते हैं, वे वस्तुतः नासमझी और मस्तिष्क विकार के परिणाम हैं। दुनिया की हर वस्तु को हम अपने दिल के गज से ही नापने का प्रयास करते हैं और हर व्यक्ति को अपने जैसा ही समझने लगते हैं। हमारा हृदय यह स्वीकार करने के लिये कतई तैयार नहीं कि कोई हमसे भी अच्छा हो सकता है । डेढ़ अक्ल की कहावत जगत प्रसिद्ध है । गोपी वास्तव में भक्त-जन का प्रतीक है जो श्रीकृष्ण रूपी आत्म स्वरूप की ओर आकर्षित है अथवा श्रीकृष्ण को भक्त प्यारा है- अतः वे उसकी ओर तल्लीन से दिखाई देते हैं। काव्यों में गोपी वस्त्रहरण प्रकरण आता है, जिसके साहित्यिक-सौन्दर्य और मर्म को समझने में कुछ लोगों ने भारी भूल की है। यही कारण है कि कुछ लोग श्रीकृष्ण को श्रृंगार रस प्रिय अथवा विषयी समझ बैठे है, जो नितान्त तथ्यहीन है। श्रीकृष्ण-आत्म स्वरूप हैं और विषय विकारवस्त्र हैं तथा इन्द्रियां-गोपियां हैं। इन्द्रियों से. विषय विकारों को हटा कर आत्म स्वरूप का दर्शन किया जाना, यह है उनका यथार्थ चित्रण, जिसे एकदम गलत रूप दे दिया गया है । वस्त्र रूपी विषय यदि धारण करें तो आत्मा बिगड़ जायेगी। आत्मा रूपी कृष्ण, वस्त्र रूपी विषय को हटावे, यह इसका आध्यात्मिक अर्थ है । जैनशास्त्रों में लोक-नायक के रूप में श्रीकृष्ण का चित्रण हैं, भगवान् तथा धर्म नायक के रूप में नहीं। श्रीकृष्ण ने साधकों की रक्षा की.। यदि उनमें त्याग की
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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