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________________ [ २२ ] आचार : एक विश्लेषण भगवान् महावीर स्वामी ने आचार को केवल काया के व्यवहार तक ही सीमित नहीं रखा, वरन् उन्होंने ज्ञानाचार और दर्शनाचार को भी आधार ही माना है। ज्ञानाचार और दर्शनाचार मस्तिष्क और हृदय को सुधारने वाले आचरण हैं। चारित्र, तप और वीर्य, ये तीनों भी आचार हैं। चाहे साधु का पूर्ण त्याग भरा जीवन हो या गृहस्थ का अपूर्ण त्यागी जीवन, दोनों के लिये ज्ञान, दर्शन और चारित्र अनिवार्य हैं। ज्ञान और दर्शन की नींव पर चारित्र का महल खड़ा है। यदि कोई ज्ञान और दर्शन से अवकाश पाना चाहे तो काम नहीं चलेगा। ___ शास्त्र में कहा है कि- "ना दंसणिस्स नाणं, नाणेण विणा न हुति चरण गुणा।" उ० २८। अर्थात् बिना श्रद्धा के ज्ञान नहीं और ज्ञान के बिना चारित्र नहीं। चारित्र का काम संचित कर्म को क्षीण करना है। इसीलिये चारित्र की व्युत्पत्ति करते हुए कहा है- "चयस्य रिक्तीकरणं चारित्रम्" शास्त्रकार भी कहते हैं: "एवं चयचरित्त कर, चारित्रं होइ आहियं !" उ० २८/३३ । आत्मा में कर्म का कचरा, मिथ्यात्व, प्रमादं और मोह के द्वारा संचित होता रहता है, जिन्हें रिक्त करने के लिये प्रयास की आवश्यकता है। किसी कमरे की खिड़की खुली रखकर छोड़ दी जाय तो कमरा कचरे से भर जायेगा। बिना श्रम के । ही यह कचरा कुछ दिनों में जमा हो जायेगा, जो दोचार बार साफ करने पर भी बड़ी कठिनाई से साफ हो सकेगा। विद्यालय, धार्मिक स्थान या निवासयोग्य भवनों में यदि दो चार दिन कचरा साफ नहीं किया जाये, तो देखते-देखते कचरे का ढेर इकट्ठा हो जाता है, जो मन को ग्लान और दुखी बनाता है। फिर आत्मा में अनेक द्वारों से आकर कर्म का कचरा जो भरता रहता है, अगर समय पर उसको साफ नहीं किया गया तो वहां आत्मदेव कैसे विराजमान रह सकेंगे। अतः देवाधिदेव आत्मा के
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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