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________________ आध्यात्मिक आलोक 109 मलेरिया आदि रोगों से अनायास ही बच सकता है । मरुभूमि के लोगों को मालूम है कि पानी का क्या मूल्य है ? आनन्द सबसे पहले अनछाने पानी का त्याग करता है। क्योंकि अनछाने पानी में असंख्य स्थावर जीवों के अतिरिक्त लाखों त्रस जीवों की हिंसा हो जाती है । वैष्णव-शास्त्र में भी अनछाने जलपान का निषेध है । कहा भी है - "पानी पीना छान कर गुरु करना जानकर ।" वहां छानने का विचार निम्न प्रकार से किया है - षटत्रिशदंगुलायामं विंशत्यंगुल विस्तृतं । दृढं गलनक कुर्यात, ततो जीवान् विशोधयेत् ।। लुताऽस्य तन्तु गलितैक, बिन्दी सन्ति जन्तवः । सूक्ष्मा भ्रमरमानास्ते, नैवमान्ति त्रिविष्टपे ।। अर्थात् ३६ अंगुल लम्बा और २० अंगुल चौड़ा मजबूत गलना बना कर उसके द्वारा पानी छानना चाहिए। क्योंकि मकड़ी के मुंह की तांत में गाले गए पानी की एक बिन्दु में इतने सूक्ष्म जीव हैं कि यदि वे भवरे जितना शरीर बना लें तो तीन : लोक में भी नहीं समा सकें। अनछाना पानी नहीं पीने से कितने जीवों की हिंसा टल जाती है । इसको आप भली-भाँति समझ गये होगे । तृणभक्षी पशु भी जब ओठ से फूंक कर पानी पीते हैं, कुत्ते, बिल्ली या शेर की तरह वे जीभ से लपलप कर नहीं पीते, तब भला मनुष्य को कितनी सावधानी रखनी चाहिए जो कि प्राणियों में सर्वोपरि बुद्धिमान है। इससे आरोग्य और धर्म दोनों प्रकार से लाभ है । बिना छाने जल पीने वाले को नारू आदि कीड़े पेट में जाकर कई प्रकार की पीड़ा उत्पन्न करने और कई बार जान जाने तक का खतरा झेलना पड़ता है। ____एक राजा ने एक बार रात को खुले में रखा पानी पीया जिसमें एक विषेला सांप उसके पेट में चला गया । अतः आनन्द ने संकल्प किया कि वह बिना छाना पानी नहीं पाएगा और न जलाशय में प्रवेश कर स्नान ही करेगा । जलाशयों में प्रवेश कर स्नान करने से अनेक हानियां होती हैं । १. सर्वप्रथम तो आस-पास का जल गन्दा हो जाता है । २. सम्पूर्ण जलाशय के जन्तुओं में हलचल मच जाती है एवं आस-पास के बहुत जलजीव मर भी जाते हैं। ३. संस्पर्शी रोगों (छूत के रोग) का प्रसार होता है और ४. जल में पैर फिसलने से नहीं तैरना जानने वाले कइयों का जान भी चली जाती है । बच्चों के डूब कर मरने के समाचार तो हर वर्ष अखबारों में पढ़ने को मिलते हैं । अतः जहां तक हो, खास परिस्थिति को छोड़ कर जलाशय में कभी नहीं नहाना चाहिये ।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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