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________________ [२०] आवश्यकताओं को सीमित करो वीतराग भगवान महावीर स्वामी का अनुशासन संसार के जीवों को सबकाल के लिए लाभदायक है । मन को स्थिर कर अनेकों ने उनकी वाणी से लाभ उठाया तथा जीवन को सफल किया है । आज भी उनकी वाणी उतनी ही प्रेरणादायक, शक्तिवर्द्धक और स्फूर्तिदायक है, जितनी कि वह पहले थी । केवल शुद्ध दृष्टि से उसपर सोचने और विचारने की आवश्यकता है। बाहरी संसार में धन, जन-परिवार एवं राज का बन्धन कितना ही दृढ़तम क्यों न हो, यदि आन्तरिक बन्धन जो काम-क्रोध लोभ-मोह का है ढीला हो जाय तो साधना का मार्ग खुल सकता है । बाग से कसा हुआ अश्व भी सवार की आत्मदृढ़ता से ही नियन्त्रित रहता है । अन्यथा वह मनमाना चलने लगता तथा आरोही को जमीन पर गिरा देता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि आन्तरिक बन्धन मनुष्य को फंसा लेते हैं और अपनी दृढ़ पकड़ में जकड़ लेते हैं । बाहरी बन्धन ढीला करने से आन्तरिक बन्धन को ढीला करने में मदद मिल सकती है । और जब अन्तर का बन्धन ढीला हो गया तो साधक को अपनी साधना में सफल होते देर नहीं लगती । साधक शंकारहित होकर कठिन साधना में भी सफलता प्राप्त कर लेते हैं। आनन्द श्रावक के हृदय में महावीर स्वामी की वीतरागता का प्रभाव पड़ने से हृदय का बन्धन ढीला हो गया । उसने पांच मूलव्रत पालने का तो संकल्प कर लिया। अब इनकी निर्मलता के लिए भोगोपभोग, आहार-विहार, सजावट आदि पर अंकुश लगाना आवश्यक जानकर, कयोंकि रसना पर अंकुश होगा तो हिंसा घटेगी, वाणी पर नियन्त्रण से सत्य निर्मल रहेगा और सजावट कम करने से आरम्भ एवं आवश्यकता घटेगी, वह उनका परिमाण करता है।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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