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________________ 15. श्रहच्च ( प ) == कभी सणं ( सवग्गु ) 211 तद (नद) संकृ प्रनि स्त्री सद्धा (मढा) 11 परमदुल्हा [ (परम ) वि- (ह दुल्हा ) 1/1 वि] सोच्चा ( सोच्ना) मंकू पनि पाउयं (गोयालय) 2 / 1 त्रि मां (मग्ग) 211 बहवे (बहन) 1/1 वि परिभस्सई (परि-भस्म ) व 3 / 1 प्रक. 16. सुई ( सुइ) 2 / 1 (प्र) = प्रोर युं (लड़) संकृ प्रनि सद्धं (सद्धा) 2/1 च (प्र) भी वोरियं (वीग्यि) 1 / 1 बुग (प्र) - फिर दुल्लहं (दुल्लड़) 1/1 वि बहवे ( बहव ) 1/1नि संयमाचा (रोप) वक्र 1/2 वि (प्र) = यद्यपि नो (प्र) नहीं ( ) - = तथा गं (त) 2 / 1 म पडिवाई' (गडिवज्ज) व 3/1 मक. 17. माणुसत्तम्मि2 ( माणुसत्त) 71 प्रायाम्रो ( श्राया) भूहः ॥॥ जो (ज) 1/1 मवि धम्मं (धम्म) 2 / 1 सोच्च' (सांच्च) संकृ अनि सद्दहे (मह) व 3 / 1 मक् तवस्सी (तवस्सि ) 11 त्रि वोरियं (वीरिय) 2/1 लढ़ (नद) मं ग्रनि संबुडी (संधुर) 1/1 विनिदुणे (निसं) व 311 मक रयं (श्य ) 21 t 1. देखे गाथा | 2. कभी कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है ( न प्राकृत-व्याकरण 3-135) 3. यहाँ 'भावापी भूक तूं वाच्य में प्रयुक्त है । 4. 'सोच्चा' का 'मोन्च' द्वन्द को पूर्ति हेतु किया गया है (पिल : प्राकृत का व्याकरण, पृष्ठ, 831 ) 1 66 1. भाषामो उत्तराध्ययन
SR No.010708
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1998
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size3 MB
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