SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • मम्मयं (मम्मय) 2/1'विप्रपा [ (मप्पण) (अट्ठा) । " (पप्पण) विट्ठ)1:5/परद्वार ) । (पट्ठा)][(पर) -(8) 311] वा. (4) पा उभयस्संतरेण [(उभयस्स) + (मंतरण)] [(उभयस्स) (अंतर) 13/1पा(अ) =या 8. हिमं (हिय) 1/1 वि विगपभमा (विगयभय) 1/2 वि दुता (बुट) 1/2 वि फरसं (फरस) 211 वि पि (4) भी पण सासणं (मगुसासरण)2/1 वेस (वेस्स) II वितं (त) 11 सवि होइ (हो) 43/4 प्रक मूढारणं (मूढ) 412 वि वंतिसोहिकरं (खंति)-(सोहिकर) I|| वियं (पय) ||| रमए (रम) व 3/1 पक परिए (परिम) 111 वि सासं (सासं) वक I|| पनि हयं (हय) 2/1 भदं (भद्द) 2/1 वि (म) -: जैसे कि बाहए. (वाहनावि बालं (बान) 2/1 वि सम्मति :: (सम्म) :43/1 प्रक सासंतो (सास) व 1|| गलिपस्स . [(गलिम) + (मस्स)] [(गलिष) वि-(प्रस) 211] व (4)= __ . जैसे कि बाहए (वाहम) 1/1 वि. 10. सहगा (खड्डुगा) 1/1 मे (अम्ह) 411 स पवेग (चवेडा) 11 प्राकोसा (प्रक्कोसा) य (म)= तथा वहा (वहा) 1/य (म)और कल्लापमरण सासंतं [(कल्लाणं) + (अणुसासंत)] कल्लाणं (कस्लाण) 211 वि प्रणुमासंतं (अणुसास) व 2/1 पारिदिः (पावदिट्टि) मूलशब्द 1/1 वि ति (म)-इस प्रकार मन्ना (मन्न) व 3/1 सक 1. कारण' पर्ष में तृतीया या पंचमी का प्रयोग होता है। - 2. कतकिारक स्थान में केवल मूल संशा सन्द भी काम में लाया जा सकता है (पिशन : प्राकृत भाषामों का पाकरण, पृष्ठ 518)। 64 ] समयसार
SR No.010708
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1998
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy